शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013
चश्मा बदल गया
बुधवार, 4 दिसंबर 2013
देश का क्या हाल है।
देश का क्या हाल है।
डॉ. नीरज भारद्वाज
हर एक देशवासी को अपने देश से प्रेम होता है और वह हर समय अपने देश के बारे में सोचता रहता है। पत्रकार मन है इसी लिए सवालों का आना-जाना लगा ही रहता है। कई बार तो ऐसे सवाल दिमाग में आते हैं कि उनका जवाब ढूंढ निकालना बडा कठिन लगता है। लेकिन साहित्य तुरंत उनके जवाब दे देता है। इसी लिए पुस्तकों को छोडने का मन ही नहीं करता और उनसे हर समय जुडे रहने का मन करता रहता है। साहित्य अपने आप में एक ऐसा वृक्ष है जिसकी न जडों का पता और न ही उसके फैलाव का पता चल पाता है अर्थात् जितना उसकी गराई में जाओं उतना ही और जानने की कोशिश होती है।
एक दिन घुमते फिरते दिमाग में कई सारे सवाल अपने ही आप पैदा हो गए और मैं उनकी खोज में कहीं ओर नहीं, बल्कि अपने ही समाज में निकल पडा और लोगों से बातें करता रहा। लेकिन मन शांत नहीं हुआ और मैं साहित्य के बारे में जानने के लिए 9 से 10 साल के बच्चों से, जो विद्यालय में पढते थे, उनसे जा मिला और उनसे हिंदी के कुछ रचनाकारों के नाम जानना चाहा, तो वह मेरे सवाल से ही घबरा गए। मैंने सोचा शायद आज की पीढी के लिए यह सवाल नया है, क्योंकि ये किताबें कम पढते होंगे और रचनाकारों के बारे में भी कम ही जानते होंगे। एक दो ने रचानाकर का नाम तो बता दिया। लेकिन उनकी रचना के नाम बताते समय अटक गए। तो मैंने सोचा इनसे सिनेमा जगत के कुछ नायक-नायिकाओं के बारे में जान लिया जाए, क्योंकि टेलीविजन तो यह रोज देखते हैं। मैंने फिल्म अभिनेता मनोज कुमार, जो अपने जामाने में भारत कुमार के नाम से विख्यात रहे उनके बारे में जानना चाहा तो सारे बच्चे मेरा मुंह ताकने लगे। मेरा सिर चकराया कि यह कैसे भावी नागरिक है न सिनेमा से जुडे न ही साहित्य से, फिर क्या होगा इस देश का।
मेरे साथ चल रहे मित्र ने कहा कि किसी नए हिरो का नाम लो। तो मैंने उससे कहा कि किसी नए रचानाकर का नाम लूं। क्या ये उसके बारे में बता पाएंगे। उन्होंने उत्तर दिया नहीं भाई, तो फिर नए हिरो का नाम क्यों याद किए हुए है। वो भी कातर भरी नजरों से मुझे देखने लगे। मैंने कहा सवाल साहित्य और सिनेमा के बीच का नहीं है। सवाल आज की उस पीढी का है, जो केवल और केवल रोजाना का सोच रही है और अपने तक ही बंध कर रहना चाहती है। वह अपने परिवार, देश और दुनिया से नहीं जुडना चाह रही है, क्योंकि संयुक्त परिवारों का टूटना ही इस नए परिवेश और समाज का कारण है।
जहां तक जानकारी की बात है आज का बच्चा इंटरनेट से जुडकर जान तो बहुत कुछ रहा है। लेकिन समझ कुछ नहीं रहा। वह केवल अपना हित चाहता है। इसी लिए सडक के किनारे कितने ही लोग सडक दुर्घटना में किसी की मदद न मिलने के कारण मर जाते हैं। कितने ही लोग धर्म और आस्था के नाम पर ठगे जाते हैं, कितने ही लोग विश्वास के नाम पर विश्वासघात कर उनके बच्चों का शोषण करते हैं और न जाने कितने ही अपराध हो रहे है। इन सभी बातों का जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि हमारा बदलता समाज और उसकी बदलती सोच ही है। वर्तमान का भारत मेरी दृष्टि से रोजाना के बारे में जानने के लिए ही रह गया है। वह भूत और भविष्य से धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है। लेकिन मेरे साहित्यकार मित्र निराश न हो, क्योंकि वही सही मायनों के भारत का सच्चा निर्माण करते हैं। जरुरत है अब ऐसी रचनाओं की जो युवा पीढी में फिर से जान डाल दे।
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