रविवार, 16 फ़रवरी 2020

विदेशी साहित्यकार और साहित्य चेतना



विदेशी साहित्यकार और साहित्य चेतना
कलम ही साहित्य का रूप धारण करती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में लिखा भी है कि, हर एक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चितवृत्तयों का वर्णन होता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भी कहा है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। विचार करें तो हर एक देश के युग परिवर्तन में कलम की ताकत को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। देशी-विदेशी सभी स्थितियों में कलम ने परिवर्तन कर समाज को जागृत कर नया रास्ता दिखाया है। मैजिनी के साहित्य ने इटली को नवजीवन प्रदान किया। गांधी जी लिखते हैं कि, 'मैजिनी के अरमान अलग थे। मैजिनी जैसा सोचता था वैसा इटली में नहीं हुआ। मैजिनी ने मनुष्य-जाति के कर्तव्य के बारे में लिखते हुए यह बताता है कि हर एक को स्वराज भोगना सीख लेना चाहिए। यह बात उसके लिए सपने जैसी रही।'[1]
फ्रांस के मार्स लेब्लांक जासूसी उपन्यास लिखने में विश्व विख्यात हैं। फ्रांस की लेखिका जार्ज सैन्ड ने सौ के लगभग उपन्यास लिखें, कहते हैं जब भी वह कलम उठाती थी लिखने बैठ जाती थी और एक उपन्यास की रचना हो जाती थी। फ्रेंच लेखक Guy de Maupassant की कहानी The Diamond Necklace (1884) चर्चित रही है। इसी का आधार हिंदी का लोकप्रिय उपन्यासकार प्रेमचंद का उपन्यास गबन रहा है।
रूसी लेखक लियो टालस्ताय (1828-1910) के 'वार एंड पीस' उपन्यास को दुनिया का सबसे सुंदर और बड़ा उपन्यास माना जाता है। इनकी कहानियों का विश्व के कई देशों में अनुवाद हुआ है, हिंदी में प्रेमचंद ने इनकी एक कहानी का अनुवाद प्रेम में परमेश्वर नाम से किया है। इस कहानी में मूरत नाम के एक व्यक्ति की कहानी को दिखाया गया है। मूरत की पत्नी और बच्चे मर जाते हैं, एक लड़का तो 20 वर्ष की अवस्था में मरता है। इस घचना से खिनन होकर मूरत का भगवान से विश्वास हट जाता है। लेकिन उसका एक मित्र उसे भगवत मार्ग पर ही चलने की सलाह देता है। धीरे-धीरे मूरत का भगवान का भजन करने लगता है और हर एक काम उसी का समझकर करता है। एक दिन भगवान उसे स्वप्न में दर्शन देते हैं और कहते हैं कि मैं तुमसे मिलने आऊँगा। लेकिन वह नहीं आते पर जब स्वप्न में भगवान उसे बताते हैं कि मैं तेरे द्वार पर बूढ़ा भिक्षूक बनकर आया, मैं एक गरीब औरत और उसके बच्चे के रूप में आया आदि। तुमने उन सभी की सेवा की यही मुझसे मिलन है। मूरत मन ही मन खुश हुआ और भगवत भजन में फिर लग गया। अंतोन चेखव (1860-1904) ने अपनी कहानियों से समाज को जागृति दी। इनकी कहानी अन्याय का विरोध में दिखाया गया है कि जूलिया जो कि आया का काम करती है, जहाँ वह पहले काम करती थी। उसका मालिक उसको वेतन नहीं देता था। अब भी वह जिस घर में काम करती है, तो मालिक उसका सारा वेतन महीने भर काम करते हुए जूलिया ने जो नुकसान किया है, उसमें काट लेता है। जूलिया मालिक का मुंह देखती रह जाता है। लेकिन मालिक उसे समझाते हुए पूरा वेतन दे देता है कि अन्याय के विरूध जरूर आवाज उठानी चाहिए। तुम केवल मेरी ओर देख रही थी, बोल कुछ भी नहीं रही थी। गोर्की के उपन्यास 'मदर' ने भी समाज और देश को नई सोच के साथ आगे बढ़ाया। रूस के इन साहित्यकारों ने ही वहाँ की जनता में एक नया जोश पैदा किया।
अमेरिकन लेखक मार्क ट्वेन के बारे में कहा जाता है कि कल्पना शून्य उपन्यास लिखने के लिए और अपने पात्रों के साथ न्याय करने के लिए जैसा पात्र होता था, उसी का व्यवहार अपने जीवन में करते थे। वह पात्र के अनुसार कितनी बार रेल-ट्राम में बिना टिकट सफर करने वाले चित्त की क्या दशा होती है, उसे जानते और फिर पात्रानुसार लिखते थे। इनका उपन्यास Innocents Abroad  उच्च कोटी का है। मार्क ट्वेन ने 13 वर्ष की अवस्था में ही स्कूल छोड़ दिया था। ट्वेन Mississippi के आस-पास का वर्णन अपनी कहानियों उपन्यासों में करते हैं। वहीं पर वह नौकरी भी करते थें। सन् 1876 में इनका उपन्यास The Adventures of Tom Sawyer भी उसी के आस-पास के वातावरण पर लिखी है। इसमें टॉम एक अनाथ लड़का होता है, जिसे पोली नामक महिला अपने घर पर ले जाती है। पोली का अपना पुत्र सीड टॉम की उम्र का है। लेकिन टॉम घर का कोई काम नहीं करता है। आवारा घुमता रहता है और अंत में घर से भाग भी जाता है। वह चोरी और लूट का ही काम करता है। अंत में लेखक हैक के माध्यम से कहता भी है कि, Tell me, who’s going to be Robin Hood, Tom? इस बात से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि Howard Pyle ने पहले अपने उपन्यास में रोबिन हुड चरित्र को खड़ा किया। इसी उपन्यास से यशपाल की कहानी कुत्ते की पूँछ याद आती है, जिसमें नायक-नायिका एक अनाथ गरीब बालक को अपने घर ले आते हैं, जिसका नाम हरूआ अर्थात् हरीश होता है। नायक-नायिका का भी पुत्र होता है। पहले हरुआ घर के लोगों की तरह रहता है। लेकिन धीरे-धीरे वह कामचोरी करता है पर इस कहानी में वह चोर या फिर लूटेरा नहीं बनता है।
 Howard Pyle अमेरिका के रहने वाले थे, लेकिन The Adventures of Robin Hood (1883) पुस्तक में इंगलैंड के नॉटिंघम में रोबिन हूड के चरित्र को दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया। वह धनी लोगों को लूटता था और गरीबों में बाँटता था। वह गरीबों का मसिहा था। इन्होंने Otto of the silver Hand (1888) को भी लिखा। साथ ही Men of Iron पर फिल्म भी बनी, जिसका नाम था The Black Shield of Falworth  रोबट फरोस्ट (1864-1973) भी अमेरिका के साहित्य में अपना अलग ही स्थान है, इनकी कविता Stopping by Woods on a Snowy Evening महत्वपूर्ण है। जिसमें जंगल से जाते हुए कवि ने जंगल की सुंदरता का वर्णन किया है। अमेरिकन लेखक H.P. Lovecraft की होरर कहानी The outsider लोकप्रिय रही। विषय के अनुसार हिंदी कहानीकार मालती जोशी ने 'आउटसाइडर' कहानी लिखी। लेकिन इनकी कहानी पारिवारिक जीवन पर आधारित है। अमेरिकन लेखिका केटी चोपिन (1850-1904) ने अपनी कहानी The Story of an hour में रेल दुर्घटना का वर्णन किया है। जिसमें लुजी मलाड़ के पति ब्रेंटली मलाड का निधन होने की खबर घर पर पहुँचती है। इसी बात को वह सत्य मान लेती है। लेकिन ब्रंटली मलाड उस स्थल से दूर होता है और कुछ दिनों बाद जब वह घर वापस लौटता है ति पत्नी उसे देख खुश होती है, जिससे उसको दिल का दौरा पड़ जाता है और मर जाती है। कवि और दार्शनिक (1803-1882) ने अपनी कविता द रोहडोरा (The Rhodora) में रोहडोरा के फूल की विशेषता का वर्णन किया है। यह फूल नार्थ अमेरिका के पूर्वी हिस्से में पाया जाता है। विचार करें तो हिंदी कविता में भी फूलों को लेकर कितनी ही कविताएँ लिखी गई हैं। निराला ने तो जूही की कली को लेकर कविता लिखी है आदि।
जर्मन महाकवि गेटे ने लिखा है- 'साहित्य का पतन राष्ट्र के पतन का द्योतक है।' कालाईल का कथन है- 'साहित्य विश्व का रहस्य-प्रकाश है।' विलियम शेक्सपियर ने अपने जीवन का आरंभ एक अभिनेता और लेखक के रूप में किया। अपने अंतिम समय में उन्होंने दुःखात-सुखान्तक नाटकों का लेखन किया था, जिनमें कुछ रोमांचक नाटक भी थे। इनके हैमलेट, ऑथेलो, किंग लेअर, मैकबेथ आदि महत्वपूर्ण है। कहा यह भी जाता है कि शेक्सपीयर ने अपने कई नाटकों की रचना इटलियन उपन्यासों के ही आधार पर की है। The Merchant of venice में लेखक शेक्सपीयर ने इटली के विवाह और संस्कृति का वर्णन किया है। इसमें लेखक विवाह के समय ऋण की समस्या को उजागर करता है। विचार करें तो भारतीय कितनी ही कहानियों में विवाह के समय ऋण की समस्या उजागर होती है। हिंदी में हरिऔध ने वेनिस का बांका नाम से एक उपन्यास भी लिखा है।
 अंग्रेजी कवि सर फिलिप सिडनी का कथन था कि, 'अपनी निगाह अपने हृदय में डालो और जो कुछ देखो, लिखो।' अंग्रेजी उपन्यासकार थैकर के विषय में लिखा गया है कि वह संध्या समय नदी के तट पर बैठकर अपने प्लाट (उपन्यास) सोचा करते थे। इंगलैंड के रचनाकार फ्रान्सिस बेकन के विषय में कहा जाता है कि वह सदैव ऐसे लोगों से जिज्ञासा करता रहता था, जो किसी विषय में उससे अधिक ज्ञान रखते थे। अंग्रेजी उपन्यासकार चार्ल्स डिकन्स (1812-1870) के विषय में लिखा गया है कि, 'जब यह किसी नए उपन्यास की कल्पना करते थे, तो महीनों तक अपने कमरे में बंद कर विचार-मग्न पड़े रहते थे, न किसी से मिलते थे, न कहीं सैर करने ही जाते थे।' इनके दर्जन भर उपन्यास थे। Oliver twist, A Christmas carol, Nicholas nickleby, David copperfield आदि रचनाओं को लिखा।  इनकी पिकविक पेपर्स हास्य रस प्रधान अमर कृति कही जा सकती है। कहते हैं कि पिकविक का नाम एक शिकार गाड़ी के मुसाफिरों की जबान से डिकन्स के कान में आया।
जॉनथन स्विफ्ट आयरलैंड का रहने वाला था और उसने 'गुलिवर की यात्रा' (1726) लिखकर साहित्य की दुनिया के सामने सोचने, समझने और कल्पना को एक नई दिशा दे दी।
जब हम हिंदी साहित्य और उसके विकास की बात करते हैं तो हमें हिंदी के विद्वानों के साथ-साथ विदेशी विद्वानों के सहयोग को भी नहीं भूलना चाहिए। इन्होंने समय-समय पर अपनी लेखनी और सच्ची साहित्य सेवा से हिंदी के विकास में अपना योगदान दिया है। 'गार्सां द तासी' एक फ्रांसीसी विद्वान थे, जो पेरिस में हिंदुस्तानी या उर्दू के अध्यापक थे। इनके इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदूई ऐ ऐंदूस्तानी ग्रंथ के दो संस्करण प्रकाशित है। एक 1839 में, दूसरा 1847 में हुआ। इसमें 738 कवियों और लेखकों की जीवनियों का उल्लेख है। इसकी भूमिका में 16 और कुल 630 पृष्ठ हैं। कुछ विद्वान इसे हिंदी का पहला साहित्य का इतिहास बताते हैं। यह हिंदी साहित्य का इतिहास हो या न हो, लेकिन देशी-विदेशी साहित्यकारों को एक साथ एक मंच पर लाने का काम जरूर रहा है।  जॉन बार्थविक गिलक्राइस्ट का जन्म एडिनबरा में हुआ था। उन्होंने एडिनबरा के जार्ज हेरियट्स अस्पताल में चिकित्सा संबंधी शिक्षा ग्रहण की। चिकित्सीय शिक्षा प्राप्त कर वे अप्रैल 1783 को ईस्ट इंडिया कंपनी में एक चिकित्सक के रूप में कलकत्ता (भारत ) आए। यहाँ इन्हे सर्जन का पद दिया गया। तब तक शासन कार्य फारसी में होता था। जॉन गिलक्राइस्ट ने फारसी के स्थान पर शासनकार्य को हिंदुस्तानी के माध्यम से चलाने की बात सोची। वे स्वयं अध्ययन करते रहे और दूसरों को भी इस बात के लिए प्रेरणा देते रहे। इतना ही नहीं गिलक्रिस्ट  ईस्ट इंडिया कम्पनी के कर्मचारी के साथ-साथ भाषाविद भी थे। कलकत्ता के फोर्ट विलियम्स कॉलेज में इन्होने हिंदुस्तानी भाषा की पुस्तकें तैयार कराने का कार्य किया। इन्होंने 1. इंग्लिश-हिन्दुस्तानी डिक्शनरी, कलकत्ता (1787) 2. हिन्दुस्तानी ग्रामर (1796) पुस्तकों की रचना भी की। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन अंग्रेजों के जमाने में "इंडियन सिविल सर्विस" के कर्मचारी थे। भाषाविज्ञान के क्षेत्र में, उनका स्थान अमर है। सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन "लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया" के प्रणेता के रूप में उभर आए। नव्य भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से उन्हें बीम्सभांडारकर और हार्नली के समकक्ष रखा जा सकता है। अंग्रेज विद्वानों में फ्रेडरिक पिंकाट का स्मरण हिन्दी प्रेमियों को सदा बनाए रखना चाहिए। इनका जन्म संवत् 1893 में इंगलैंड में हुआ। उन्होंने प्रेस के कामों का बहुत अच्छा अनुभव प्राप्त किया और अंत में लंदन की प्रसिद्ध ऐलन ऐंड कंपनी के विशाल छापेखाने के मैनेजर हुए। वहीं वे अपने जीवन के अंतिम दिनों के कुछ पहले तक शांतिपूर्वक रहकर भारतीय साहित्य और भारतीय जनहित के लिए बराबर उद्योग करते रहे।  सैमुएल केलॉग का जन्म 06 सितंबर, 1839 में, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के न्यूयार्क के लाँग आइलैण्ड में क्योकू नामक स्थान में एक गिरजा-भवन (परोहिताश्रम) में हुआ। केलॉग की पुस्तक का नाम था- ए ग्रामर आफ द हिन्दी लैंग्वेज, इसका पहला संस्करण 1874 में प्रकाशित हुआ था। केलॉग ने अपने प्रथम संस्करण के समय लल्लूलाल के प्रेमसागर के उदाहरण लिए। लेकिन दूसरे संस्करण में राजा लक्ष्मण सिंह द्वारा प्रस्तुत अभिज्ञान शाकुंतलम् की सहायता ली। केलॉग जिस समय हिन्दी व्याकरण लिख रहे थे, यूरोप के कुछ विद्वान भारत में बोली जानेवाली आर्य-परिवार की भाषाओं का अध्ययन कर चुके थे। केलॉग ने अपने समकालीन तथा पूर्ववर्ती विद्वानों को पढ़ा, जो इस प्रकार हैं-बीम्स, हार्नली, पिनकाट, प्लेट्स और ग्रियर्सन आदि। 
किसी देश का साहित्य जानना, समझना, पढ़ना, एक दिन, एक पल और एक क्षण का काम नहीं है। उसके विकास में कितने ही लोगों का योगदान रहता है। इसके बारे में तो उपर्युक्त चर्चा से समझ आ ही गया होगा। इतना ही नहीं समय और परिस्थिति के साथ-साथ भारतीय लोग भी देश की मिट्टी को छोड़ विदेशों में जाकर बस गये और अपनी मिट्टी के लिए कुछ करने की चाहत ने उन्हें लेखन के कार्य की ओर मोड़ दिया। लेखन का यह कार्य वर्तमान में विदेश में रह रहे लोगों द्वारा किया जाना अब प्रवासी साहित्य कहा जाता है। जो भी हो, ये लोग भी हिंदी का ही काम और सेवा कर रहे हैं। अपनी संस्कृति, अपनी मिट्टी की सुगंध, वातावरण, परिवेश और परिस्थितियों से किसी भी सूरत में नाता नहीं तोड़ना चाहते हैं। ऐसे प्रवासी साहित्यकार देश से हजारों किलोमीटर दूर बैठे रहने के बावजूद भी अपनी दिव्यदृष्टि देश हित में ही रखते हैं। उनकी कलम सच्ची ताकत है।


[1] . हिंदी स्वराज, महात्मा गांधी, पेज-49.

परीक्षा के परीक्षकः नरेन्द्र मोदी