पत्रकारिता जनून है
डॉ. नीरज भारद्वाज
पत्रकारिता के अर्थ की बात करें तो पत्रकारिता को अंग्रेंजी
में
‘जर्नलिज्म’ कहते है, जो ‘जर्नल’ शब्द से निकला है] जिसका शाब्दिक अर्थ ‘दैनिक’
है अर्थात् दिन&प्रतिदिन के क्रिया&कलापों] सरकारी] सावर्जनिक बैठकों का विवरण ‘जर्नल’ कहलाता है। लेकिन शाब्दिक अर्थ जो भी हो पत्रकारिता यदि जनून है तो
पत्रकार जनूनी है, पत्रकारिता जंग है तो पत्रकार जंगी है, पत्रकारिता सच्चाई है तो
पत्रकार उस सच्चाई को उदघाटित करने वाला सत् चरित्र पुरुष है, पत्रकारिता राह है
तो पत्रकार उस राह का एक राहगीर है, पत्रकारिता देश का आईना है तो पत्रकार सच्चा
देशभक्त है, जो उस आईने पर धूल नहीं जमने देता है। पत्रकारिता और पत्रकार आखिर है
क्याॽ यह सवाल कई बार सामने आया तो यह सब लिखने को मन
किया। डॉ. शंकरदयाल शर्मा लिखते हैं कि “पत्रकारिता एक पेशा नहीं है, बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।” आधुनिक समय मे पत्रकारों ने अपने निरंतर प्रयासों से पत्रकारिता को एक नई ऊँचाई और गंभीरता दी है । इस दृष्टि से पत्रकारिता यदि समसामयिक घटना&चक्र का शीघ्रता में लिखा गया इतिहास है तो
पत्रकार उस इतिहास को लिखने वाला एक सफल इतिहासकार है। प्रो. अंजन कुमार बनर्जी के शब्दों में कहें तो “पत्रकारिता पूरे विश्व की ऐसी देन है जो सबमें दूर दृष्टि प्रदान करती है ।
पत्रकारिता ज्ञान और विचारों को शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना है। पत्रकारिता की उत्पत्ति
समाज
में
जनचेतना और
जागृति के
लिए
मानी
जाती
है। पत्रकारिता लोगों के बीच संवाद कायम करती है और पत्रकार उस संवाद
को नई रोशनी देता है। पत्रकारिता
सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक चेतना की अग्रदूत बनकर जनकल्याण और विश्वबंधुत्व एवं भ्रातृत्व की भावना को विकसित करने का सशक्त माध्यम है। पत्रकारिता देश, समाज तथा
लोगों को ‘जीने की कला’ सिखाती है। विचार किया जाए तो हमारे
चारों ओर होने वाली सभी घटनाएं पत्रकारिता के अंग है और हम जाने-अजाने पत्रकारिता
करते रहते हैं, जरुरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की। वास्तव में भारत में पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता के विकास की कहानी है और दोनों की विकास भूमियां एक दूसरे की सहायक रही हैं। यदि पत्रकारिता को राष्ट्रीयता ने उजागर किया है तो पत्रकारिता ने भी राष्ट्रीयता को उज्वलित कर राष्ट्रीयता के विकास की अनुकूल भूमि तैयार की। पत्रकारिता
साहित्य की भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें