रसखान देव मतिराम
दुर्मिल सवैया (चंद्रकला)- 24 वर्ण इसमें आठ सगण (IIS) होते हैं तथा 12-12 पर यति होती है। उदा.- इसके अनुरूप कहैं किसको वह कौन सुदेश समुन्नत है। (24) केशवदास
किरीट सवैया- इसके प्रत्येक चरण में आठ भगण (SII) के क्रम से 24 वर्ण हैं। उदा.- मानुस हौं तु वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव कि ग्वारन। जो पसु हों तो कहा बस मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन।। रसखान देव
द्रुतविलम्बित छंद- इसके प्रत्येक चरण में नगण (III), भगण (SII), भगण (SII), रगण (SIS) है। इसमें 12 वर्ण होते हैं। हिंदी खड़ी बोली का पहला महाकाव्य प्रियप्रवास (हरिऔध) का आरंभ इसी छंद से है। उदा.- दिवस का अवसान समीप था, गगन था कुछ लोहित हो चला, तरु शिखा पर थी अब राजती, कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा इन्द्रवज्रा- इसमें 11 वर्ण होते हैं। इसमें दो तगण (SSI), एक जगण (ISI) दो गुरू होते हैं। संस्कृत काव्य में इसका प्रयोग अधिक है। मैथिलीशरण गुप्त और हरिऔध ने इसका प्रयोग अधिक किया है। उदा.- मैं जो नया ग्रंथ विलोकता हूँ, भाता मुझे सो नव मित्र सा है, उपेन्द्रवजा- इसमें 11 वर्ण होते हैं। इसमें जगण (ISI), तगण (SSI) और दो गुरू होते हैं।
भुजंग प्रयात- इसमें चार यगण (ISS) के क्रम से 12 वर्ण होते हैं। उदा.- जहाँ कंज के कुंज की मंजुता थी। लता पवित्रता-पुष्पिता गुंजिता थी।
शिखरिणी- इसमें 17 वर्ण होते हैं। य,म,न,स,भ और लघु गुरू होतै है। उदा.- घटा कै सी प्यारी प्रकृति, तियके चन्द्र मुख की नया नीला ओढ़े वसन चटकी ला गगन का।
मालिनी- इसमें 15 वर्ण होते हैं। इसमें दो नगण, एक मगण, दो यगण होते हैं। उदा.- प्रिय पति वह मेरा, प्राण प्यारा कहाँ है? दुःख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है?
मन्दाक्रान्ता- इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। शार्दूल विक्रीड़ित- इसके प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं। कवित्त कवित्त को घनाक्षरी छंद, मनहरण छंद भी कहा जाता है। यह छंद मुक्तक वर्णिक छंद की कोटि में माना जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 31 (16+15) वर्ण होते हैं। 15 या 16 या 31 वर्ण पर यति होती है। चरण के अंत में गुरू होता है। पद्माकर घनानंद केशवदास सेनापति जगन्नार्थ दास रत्नाकर (उद्धव शतक) भूषण देव रुप घनाक्षरी जिस पद्य के प्रत्येक चरण में बत्तीस वर्ण हों और अंत में लघु का विधान हो वहाँ रूप घनाक्षरी छंद होता है।