शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

गद्य शिक्षण

       गद्य शिक्षण
एकांकी
       एकांकी शब्द का अर्थ- एक अंक वाला
       अंग्रेजी में इसे "वन एक्ट प्ले'' कहा जाता है।
       संस्कृत में भी ''वीथि ' को एकांकी का ही एक रूप माना जाता है।
       एकांकी में एक अंक, एक घटना, एक समस्या होती है।
       एकांकी का आरंभ जयशंकर प्रसाद की ̒एक घूंट̕
 से माना जाता है।
       एकांकी में संक्षिप्तता और गतिशीलता होती है।
       एकांकी दृश्यात्मक होती है। (मंचन करना)
       इसे कक्षा में पात्रानुसार बच्चों द्वारा पढ़वाया भी जा सकता है और उसे मंचित भी किया जा सकता है।
       संदर्भानुसार उचित उतार-चढ़ाव के साथ बोलना एकांकी में सहायक है।

एकांकी शिक्षण के उद्देश्य
       एकांकी में निहित सौंदर्य तत्वों का बोध भावों की अनुभूति करने की योग्यता।
       विभिन्न पात्रों के संवादों और वार्तालाप को उचित आरोह-अवरोह के साथ प्रसंगानुकूल प्रस्तुत करने की योग्यता।
       अभिनय क्षमता विकसित करने की योग्यता।
नाटक / एकांकी विधि
       व्याख्या प्रणाली
       रंग-मंच अभिनय प्रणाली
       आदर्श नाट्य विधि
       संयुक्त विधि
कहानी, नाटक, उपन्यास के अंग
  1. कथानक
  2. देशकाल और वातावरण
  3. चरित्र-चित्रण
  4. संवाद
  5. भाषा-शैली
  6. उद्देश्य
कहानी शिक्षण विधि
       अर्थ कथन प्रणाली
       व्याख्या प्रणाली
       समीक्षा प्रणाली
       कहानी विद्यार्थियों की कल्पना, उत्सुकता, एवं जिज्ञासा के विस्तार के लिए पढ़ाई जाती है।
       कहानी शब्द भंडार, कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता का विकास करती है।
       बच्चे कहानियाँ पढ़ते हैं तो वे अन्य लोगों के अनुभवों में प्रवेश करते हैं।
       कहानी द्रुत पाठ में सहायक होती है।
संस्मरण
       जब कोई विख्यात व्यक्ति किसी अन्य विशिष्ट व्यक्ति के संबंध में चर्चा करते हुए स्वयं के जीवन के किसी अंश  को प्रकाश में लाने की चेष्टा करता है, तब संस्मरण विधा का जन्म होता है।
       संस्मरण को पाठक यथार्थ मानकर पढ़ता है और लेखक उसे प्रस्तुत भी ऐसे ही करता है।
       संस्मरण विवरणात्मक होते हैं।
       इसमें लेखक व्यास शैली का प्रयोग करता है।
रेखाचित्र
       इसमें कुछ चुने हुए शब्दों के द्वारा विषय-वस्तु, व्यक्ति, स्थान, घटना एवं दृश्य को साकार रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि पाठक के सामने पूरी तरह चित्रवत् चित्रित हो सके।
       रेखाचित्र वर्णात्मक होते  हैं।
       इसमें लेखक की दृष्टि संवेदात्मक होता है।
       इसमें लेखक समास शैली का आश्रय लेता है।
आत्मकथा / जीवनी
       अपने जीवन की घटनाओं  का स्वयं लिखा हुआ विवरण आत्मकथा  है और दूसरे द्वारा लिखा हुआ विवरण जीवनी है।
       आत्मकथा लेखन वास्तव में अपने को, अपने ही हाथों छीलने की प्रक्रिया होती है।
       महात्मा गाँधी जी ने आत्मकथा लिखी। जीवनी हम लेखकों की पढ़ते ही हैं।
निबंध
       नि- का अर्थ है विचार, बंध- का अर्थ है बांधना अर्थात् अपने विचारों को बांधकर लिखना ही निबंध होता है।
गद्य शिक्षण के उद्देश्य
       बच्चों में भाषा संबंधी ज्ञान को विकसित करना।
       बच्चों के शब्द उच्चारण को शुद्ध करना।
       बच्चों की रचनात्मक शक्ति को विकसित करना।
       बच्चों को गद्य की विभिन्न शैलियों का ज्ञान करना।
       बच्चों की तर्क, विचार तथा कल्पना शक्ति को विकसित करना।
       बच्चों में नैतिक और चारित्रिक विकास करना।
श्रवण कौशल
भाषा कौशल
       श्रवण कौशल
       पठन कौशल, वाचन
       मौखिक
       लेखन कौशल
श्रवण कौशल
       चार भाषायी कौशलों में श्रवण कौशल प्रमुख है।
       भाषा शिक्षण के संदर्भ में श्रवण का अर्थ सुनकर भाव-अधिगम या भावग्रहण करना है।
       श्रवण में किसी कथन को ध्यानपूर्वक सुनने, सुनी हुई बात पर चिन्तन-मनन करने, अपना मंतव्य स्थिर करने और तदनुसार आचरण या व्यवहार करने जैसी जटिल प्रक्रियाएँ सम्मिलित है।
       श्रवण एक मानसिक क्रिया है।
       बच्चों की श्रवण-योग्यता का विकास करने में परस्पर बातचीत सर्वाधिक सहायक है।
       मुख्यतः तीन स्थितियों में सार्थक श्रवण के अवसर मिलते हैं, यथा- कक्षा शिक्षण के समय, सहशैक्षिक क्रियाओं के समय तथा पाठ्येत्तर क्रियाकलापों के समय।
       मौखिक अभिव्यक्ति कौशल
       अपने भावों और विचारों को प्रभावी ढंग से सार्थक शब्दों में बोलकर व्यक्त करने को मौखिक अभिव्यक्ति कहते हैं।
       मौखिक अभिव्यक्ति के निम्नलिखित पाँच पक्ष होते हैं- 1. शुद्ध उच्चारण, 2. निस्संकोच भावाभिव्यक्ति  3. उचित गति, बलाघात तथा अनुतान, 4. उचित हाव-भाव, 5. विचारों में क्रमबद्धता।
       मौखिक अभिव्यक्ति के अनौपचारिक तथा औपचारिक दो रूप हैं।
       औपचारिक मौखिक अभिव्यक्ति को दो उप भागों में बांटा जा सकता है-
        1. साहित्यिक 2. व्यावहारिक
q  परस्पर बातचीत (वार्तालाप) सुनने और बोलने के कौशलों के विकास में सहायक है।
q  पठन कौशल
q  हम जितना अधिक पढ़ते हैं उतना ही अधिक समझने की शक्ति बढ़ती है।
q  यह कौशल के रूप में प्रारंभ होता है और योग्यता के रूप में इसकी परिणति होती है।
q  पठन कौशल भी है और योग्यता भी।
q  पठन- लिपि प्रतीकों को पहचाना, उच्चारण कुशलता, अर्थग्रहण एवं आशय समझ की योग्यता का समावेश है।
q  पाठ के पठन के स्तर होते हैं- पाठ की पंक्तियों का वाचन करना, पंक्तियों को गहराई से पढ़ना, पाठ की पंक्तियों में निहित आशय को पकड़ना।
q  बच्चों की पठन कुशलता का विकास करने में विभिन्न संदर्भों  से जुड़ी  सामग्री सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
q  संदर्भानुसार अर्थ ग्रहण करना पठन कौशल में ज्यादा महत्वपूर्ण है।
सस्वर पठन
       इसमें शब्दों का उच्चारण, वाक्यों का शब्द समूहों में विभाजन, अनुतान, विराम चिह्न, प्रवाह आदि महत्वपूर्ण हैं। यह मौखिक अभिव्यक्ति के निकट है।
मौन पठन
       मौन पठन में स्वरहीनता, पठन गति तथा अर्थग्रहण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
       मौन पठन में अर्थग्रहण पर बल होता है। इसीलिए वह ज्ञानार्जन का मुख्य आधार है।
पठन कौशल में असमर्थताएँ
       दृष्टि संबंधि (शेष दृष्टि वाले बालक)
       श्रवण और वाक् (ऊंचा सुनने के कारण, शब्द की ठीक से पहचान)
       मानसिक रूप (सामान्य बालक की अपेक्षा देर से शब्द पहचानना, मात्रा चिह्न कुछ समय बाद भूलना, अनुतान और बलाघात की उपेक्षा, अशुद्ध उच्चारण के साथ पढ़न, कक्षा में इधर-उधर देखना।
       लेखन कौशल
       लिखकर विचार प्रकट करने के लिए निश्चित किए गए वर्णों के ध्वनि चिह्नों को लिपि कहते हैं।
       ब्राह्मी लिपि से हिन्दी का जन्म हुआ।
       लिखना भी एक तरह बातचीत है।
       देवनागरी लिपि के लेखन के लिए चार रेखाओं वाली अभ्यास पुस्तिका का प्रयोग किया जा सकता है।
       लेखन कला का विकास अभ्यास से होता है।
       सुलेख- सुन्दर लेख को सुलेख कहते हैं।
       अनुलेख- अनुलेख से अभिप्राय है श्यामपट्ट अथवा पुस्तक की सामग्री को ज्यों का त्यों देखकर लेख लिखना। इसका मुख्य उद्देश्य है शुद्ध वर्तनी सहित लेखन का अभ्यास कराना।
       श्रुतलेख-  सुनकर लिखे गए लेख को श्रुतलेख कहते हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें