दाम्पत्य जीवन का जवाब : कोई और सवाल
डॉ. नीरज भारद्वाज
कहानी व्यक्ति की कल्पना, उत्सुकता एवं
जिज्ञासा के विस्तार के लिए होती है। कहानी हमारे मस्तिष्क में शब्द भंडार,
कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता का विकास करती है। विचार करें तो कहानियाँ पढ़ने से
हमें अन्य लोगों के अनुभवों में प्रवेश करने का मौका मिलता है। इससे
हमें कौन, कहाँ और कैसे लिखता है? आदि कितने ही प्रश्नों को जानने का मौका मिलता
है। हीलिंग द माइंड थ्रू द पावन ऑफ स्टोरी में डॉ. लुइस मेहल मेडरोना कहती
हैं- 'कहानियों के जरिए दिमाग बाहरी दुनिया का
नक्शा तैयार करता है। बार-बार एक ही तरह की कहानी से दिमाग उसी नक्शे के अनुसार
प्रतिक्रिया देने लगता है।' कहानी
शब्दजाल नहीं, बल्कि कहानीकार का जीवन-दर्शन कराता है। कहानी विधा में समय के साथ
परिवर्तन हुआ है और होता रहेगा, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। कहानियों के
विषय समाज, देशभक्ति, लोकसेवा, प्रेम, जासूसी आदि कितने ही रहे हैं। हर एक
कहानीकार इन विषयों को अपने हिसाब से दिखाता और समझाता है।
हमारे केंद्र में
प्रवासी साहित्यकार जय वर्मा और उनका कहानी-संग्रह सात कदम है। यहाँ केवल उनकी एक
कहानी कोई और सवाल पर चर्चा हो रही है। जय वर्मा ने अपनी कहानियों में
भारतीय और पाश्चात्य दोनों ही संस्कृतियों का मेल बढ़े ही सुंदर ढंग से किया है।
एक सफल साहित्यकार अपनी लेखनी से ही बताता है कि उसके अंदर कितनी प्रतिभा है, साथ
ही उनके पात्र हर एक दृश्य को उजागर कर देते हैं। कहानी-संग्रह के आरंभ में ही
लेखिका लिखती हैं कि- 'कहानीकार की
भूमिका यही है कि वह अपने अंदाज़ से विश्वास के साथ उन अनुभूतियों को एक कलेवर दे,
उन्हें जीवंत करे।' कहानीकार ने
अपनी कहानियों में इस बात का हर समय ख्याल रखा है। कहानी अपने कलेवर के साथ-साथ
पात्रों की संजिदगी से भी जीवित होती है, क्योंकि पात्र ही तो पाठक के मानसपटल पर
अपनी छाप छोड़ता है, जो युगों-योगों तक पाठक के अंदर समाज में जीवित रहता है।
पात्रों का संवाद ही तो सार्थकता को गढ़ता है। लेखिका लिखती हैं कि- 'मेरी कहानियों के किरदार भी कभी त्रस्त
होकर भटकते हैं तो कभी जटिल समस्याओं से पार पाकर अपना अभीष्ट भी प्राप्त करते
हैं। विविधता से भरे संसार में इससे छुटकारा भी तो नहीं।' ऐसा ही पात्र कोई और सवाल कहानी का डोरीन है। डोरीन नारी
पात्र होने के साथ-साथ कहानी की मुख्य पात्र है। पूरी कहानी डोरीन के साथ चलती है।
कहानी का पहली पंक्ति- 'आज डोरीन ने
आजादी की साँस ली!' और कहानी का
समापन भी डोरीन के घर छोड़न से होता है- 'इस समय वह अपने बच्चों, समाज या किसी अंज़ाम के बारे में नहीं सोच रही थी,
बस नये जीवन की तलाश में तेज़ गति से आगे बढ़ती जा रही थी।' (पेज-29)
नायिका
प्रधान इस कहानी में कहानीकार ने एक साथ बहुत सारे बिंदुओं पर प्रकाश डाला है, मूल
रूप से नारी को लेकर। समाज चाहे देशी हो या विदेशी समस्याएँ सभी जगह एक जैसी हैं।
कहानी में नारी-त्रासदी, नारी-मुक्ति, नारी-शोषण, नारी-चरित्र, नारी की गरिमा,
नारी का आत्मसम्मान आदि हैं। कहानी के आरंभ में ही डोरीन जब अपनी माँ से पीटर
जॉनसन के साथ सिविल मेरिज करने की बात करती है तो माँ का इराद तो शादी के विरूध था,
लेकिन संतान के आगे उसकी एक नहीं चली, 'अपने निर्णय पर पुनः विचार करना, बिना पढ़ाई पूरी किये शादी का फैसला उचित
नहीं है।' (पेज-22) इतना ही नहीं कहानी में दाम्पत्य जीवन का रंग अर्थात् पति-पत्नी के बीच
मधुर और कटू दोनों ही रिश्तों को दिखाया गया है। इतना ही नहीं कहानी में पारिवारिक
और आर्थिक स्थिति को भी उजागर किया गया है। मधुर संबंधों की बात करें तो, 'शादी के बाद पीटर और
डोरीन का दाम्पत्य जीवन प्रसन्नता और प्रेम के साथ तेज़ी से बीतने लाग। एक बेटा डेविड
तथा दो बेटियों को डोरीन ने जन्म दिया। बेटियों के नाम लूसी तथा एना
रखे।'
(पेज-23) जहाँ तक परिवार में अलगाव और भय की बात है, उसे भी लेखिका ने दिखाया है, 'पीटर से वह भयभीत
रहती...मॉम हमें डैडी से डर लगता है, अब वे हमें पहले जैसा प्यार नहीं करते।' (पेज-27) जहाँ
तक आर्थिक स्थिति की बात है डोरीन अपने पति के काम में हाथ बटाती थी, 'छोटे से फार्म पर
मुर्गियों के अंडे इक्ट्ठे करके अपने पति की सफेद रंग की चारों तरफ से जंग लगी
मिनी वैन में बाज़ार में बेचने के लिए रख देती।' (पेज-23) इतना ही नहीं बच्चे भी होश संभालते
ही काम में लग जाते हैं। 'डेविड ने चार्नवुड पार्क में ग्रीनकीपर के साथ माली का काम करना आरंभ कर दिया.....
दोनों बेटियाँ लूसी एवं एना दिन में पढ़ाई करती थीं और शाम के समय दोनों बुल-हैड
नाम के एक पब में काम करतीं।' (पेज-27) डोरीन घर बचाने का हर संभव प्रयास करती है। लेकिन पति पीटर के
व्यवहार से तंग आकर वह घर छोड़ने का निश्चय कर लेती है। वह किसी भी कीमत पर अपना
आत्मसम्मान नहीं खोना चाहती है।
विचार
करें तो कहानी अपने छोटे से कलेवर में पारिवारिक पृष्ठभूमि के साथ खड़ी होती है,
जहाँ प्यार, परिवार, सुख, एक दूसरे का हाथ बटाना आदि दिखाया गया। लेकिन धीरे-धीरे
कहानी अलगाव की ओर चली जाती है और जिसका अंत डोरीन के घर छोड़ने पर होता है। कहानी
में आत्मसम्मान, पति-पत्नी का द्वंद्व, आर्थिक तंगी, पारिवारिक घुटन, पुरूष की
बेरूखी, नारी का संघर्ष, चेतना, श्रम, प्रेम, अलगाव, विद्रोह सभी कुछ तो उभरकर आ
गया है। इन सभी बातों से अलग कहानीकार का प्रकृति प्रेम भी कहानी में देखने को
मिलता है, जब जहाँ मौका मिला वह प्रकृति की ओर हो लेती हैं, 'चार्नवुड लेस्टरशायर की छोटी-छोटी पहाड़ियों
के बीच में बसा एक रमणीक और आकर्षक गाँव है।' (पेज-21) ऐसे कई उदाहरण कहानी में हमें मिल
जाते हैं। कहानी की भाषा सहज और सरल रही है, जो पाठक को अपने से बाँधे रखती है।
कहानी नए मानव मूल्यों के साथ उभरी है और वह विश्व फलक पर अपना अलग ही स्थान रखती
है। अभी के लिए इतना ही, आगे फिर कभी, कोई और सवाल हमसे न पूछे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें