1. दूसरा
देवदास कहानी की समीक्षा
आधुनिक
हिन्दी समकालीन साहित्य में ममता कालिया एक सुविख्यात नाम है। ममता कालिया की
कहानी दूसरा देवदास प्रसिद्ध कहानी है। कहानी अपने संक्षिप्त कलेवर के साथ प्रेम
को आधार बनाकर चलती है। कहानी के नाम से देवदास की एक छाप जो पाठक के मन पर पडती
है यह उससे बिलकुल अलग दिखाई देती है। कहानी एक दम नए कलेवर के साथ हरिद्वार के
पावन स्थल से शुरू होती है और वहीं पर समाप्त भी हो जाती है।
कहानी का नायक संभव एम. ए. पास दिखाया गया है।
वह प्रेम से अनभिज्ञ है और माँ सबिता के कहने पर गंगा स्नान करने हरिद्वार नानी के
साथ है। नानी ही उसे हर की पौड़ी पर आरती के समय ले जाती है। वहीं से शुरू होती है
संभव के प्रेम की कहानी। जैसे ही उसे गुलाबी भीगी साड़ी में वह लड़की दिखाई देती
है, जो आरती के बाद पंडित के पास कलावा बंधवाने आयी थी वहीं से प्रेम का अंकुर संभव
के मन में पैदा होता है। वह अंकुर लंबे समय तक नहीं चलता। संभव अपने प्रेम को केवल
अपने मन तक ही सीमित रखता है। वह मन में उठने वाले सवालों और जवाबों को देता रहता
है। कहानी के अंत में जैसे ही नायिक सामने आती है तो वह कुछ भी कह नहीं पाता।
कहानी
अपने छोटे से कलेवर में पाठक को बहुत कुछ कह देती है और प्रेम का एक नया रूप उभार
कर रख देती है, जो आज के नवयुवकों को समझाती है कि प्रेम की अनुभूति होती है, जो
होठों से ही नहीं कहीं जाती। कई बार शब्दहीन भी बहुत कुछ कह देती है, उसका शारीरिक
सुख नहीं। कहानी की शुरूआत भी लेखिका हरिद्वार में गंगा आरती से करती है और पूरी
कहानी हरिद्वार के परिवेश में रहती है। कहानी के अंत में मंशा देवी के प्रांगण को
दिखाया गया है। जहाँ नायक (संभव) और नायिका पारो का मिलन होता है। कहानी में
नायक-नायिका के मिलन में छोटा बालक जो नायिका का भतीजा है अपनी अह्म भूमिका अदा
करता है और उनके मिलन में लेखिका उसका योगदान अचानक ही बना देती है।
कहानी
में गति है और पाठक कब कहानी के अंत में पहुंच जाता है पता नहीं चलता। यह कहानी की
सबसे बड़ी विशेषता है। लेकिन कहीं-कहीं कहानी अपने आप में टूटी हुई सी भी दिखाई
देती है, जैसे छोटा बालक जो नायिका का भतीजा है का एका-एक आना और नायक से बात करना
तथा फिर गायब हो जाना, मंशा देवी से उतरते हुए फिर उसका दिखाई देना। पाठक को
परेशानी में डाल देता है। कहानी में रोचकता है लेकिन कहानी अपना कोई सुखद अंत नहीं
कर पाई है। नायक और नायिका दोनों के ही मन की बात अधूरी रह गई है। कहानी को पढ़ने
का बाद मोहन राकेश का लेखन याद आ जाता है क्योंकि उनके लेखन में भी अधूरा पन सा
था।
2. अपत्नी-
(ममता कालिया) कहानी की समीक्षा
अपत्नी दो दोस्तों हरिश और प्रबोध की कहानी है,
कहानी में हरिश को शादीशुदा दिखाया गया है। जबकि प्रबोध का पहली पत्नी से तलाक हो
चुका होता है और वह लीला के साथ लिव-इन-रिलेशनसिप में रह रहा होता है। एक दिन हरिश
अपनी पत्नी के साथ प्रबोध के घर जाता है जहाँ लीला बैड पर लेटी होती है और बाद में
खड़ी होती है। घर के रहन-सहन की स्थिति को देखकर हरिश की पत्नी खिन्न हो जाती है
और वह घर से बाहर निकलना चाहती है। कहानी का शीर्षक अपत्नी न होकर अवैध रिश्तों की
धोखाधड़ी हो सकता था क्योंकि प्रबोध की पहली पत्नी उससे अलग रहती थी और लीला से
उसके शारीरिक संबंध तो हैं पर पत्नी का नाटक
करती है कहानी में बताया गया है कि वह जब भी प्रबोध के किसी दोस्त के घर
जाती है तो मंगलसूत्र पहन लेती है वरना नहीं और लीला तथा प्रबोध की शादी हुई भी
नहीं है तो कहानी का शीर्षक अपत्नी सार्थक नहीं दिखाई पड़ता।
कहानी
अश्लीलता को परोसती नज़र आती है। जो कि कहानी की संवाद योजना से पता चल ही जाता
है। लीला का बैड से उठकर ब्लाउज का बटन बंद करते हुए दिखाना अर्थात् वह बैड पर किस
अवस्था में थी वह तो आप समझ ही सकते हैं जबकि घर पर मेहमान आ चुके थे। दूसरा कहानी
में प्रबोध द्वारा यह कहना कि- कैसी अजीब बात है,
महीनों सावधान रहो और एक दिन के आलस से डेढ़ हज़ार रूपये निकल
जायें। कहानी में आगे दिखाते हैं कि प्रबोध की पहली पत्नी के द्वारा प्रबोध को
देखना और दाँतो तले होठ दबाना। इस प्रकार पूरी कहानी में अवैध संबंधों पर ही चर्चा
होती रहती है। कहानी अपने परिवेश में सैक्स और नए समाज के रहन-सहन को दिखाती नज़र
आती है।
3.
पीठ (ममता
कालिया) कहानी की समीक्षा
पीठ कहानी अपने
छोटे से कलेवर में दो दोस्त हर्ष और दर्शन की कहानी को समेटे हुए है। हर्ष
चित्रकार है जो नौकरी करके किसी के साथ बंध कर रहना नहीं चाहता। दर्शन हिंदी लेखन
का कार्य करता है जो धारावाहिक या किसी अन्य विधा के लिए लेखन करता रहता है और वह
स्क्रिपट के हिसाब से कहानी लिखता है। हर्ष स्वतंत्र होकर चित्रकारी करता है तो
दर्शन माँग के अनुसार लिखता है। एक दिन हर्ष को एक लड़की इंदुजा मिलती है जो
प्रत्यक्ष प्रदर्शनी का कार्य करती है-
क्योंकि मॉडल शब्द से इंदुजा को नफरत है। धीरे-धीरे हर्ष और इंदुजा की
दोस्ती आगे बढ़ती है और शादी तक पहुंच जाती है। इन दोनों का प्रेम-विवाह कराने में
दर्शन साथ देता है और दोनों को मिलवाकर ही साँस लेता है। एक दिन इंदुजा ने गर्मी
के कारण महीन मलमल का कुर्ता पहन रखा था उसमें से दिखते उसके अंतःअंग और पीठ को
देख हर्ष ने एक चित्र बनाया जो लोकप्रिय होने के साथ-साथ हर्ष की प्रसिद्धि का
कारण भी बना। एक दिन दर्शन ने मजाक में कह दिया कि चित्र में जो पीठ है वह इंदुजा
की है। यहीं से हर्ष के दिमाग में इंदुजा के चरित्र पर शंका हो जाती है और वह उससे
कहता है कि दर्शन को कैसे पता चला कि यह तुम्हारी पीठ है। पीठ का चित्र अब हर्ष की
खामोशी बन गया और दुनिया से कटा-कटा रहने लगा।
रचनाकार ने अपने
लेखन में एक बार फिर उत्तेजक चित्र उकेरने का प्रयास किया है, जो इस प्रकार है- इंदुजा ने एकदम महीन मलमल का कुर्ता पहन लिया, बिना अंतःवस्त्रों के। षटकोणीय लैंपशेड की आड़ी–तिरछी किरणें उसकी पीठ को जगमगा गईं। उसकी तांबई त्वचा पर सुनहरी प्रकाश–रश्मियाँ खो खो खेल रही थीं। उस वक्त हर्ष की उपस्थिति और अपनी देह की
अवस्थिति से निसंग वह कुर्ते का आगे का हिस्सा उठाकर अपने को हवा कर रही थी। कहानी
मित्रता और पत्नी के चरित्र हनन की दशा भी दिखाती है।
4.
एक दिन अचानक
(ममता कालिया) कहानी की समीक्षा
एक दिन अचानक कहानी ममता कालिया के रचना कौशल को दूसरा देवदास लेखन
के कौशल से अलग स्वरूप में खड़ा कर देती है। कहानी दो भाइयों की है
अमल बड़ा भाई जो इंजीनियर बना और शादी के बाद से माता-पिता से अलग रहता है कभी
कभार फोन पर उनका हालचाल जान लेता है। अखिल जो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है। एक दिन सड़क पर स्कूटर से गिरने पर डॉक्टर बेटे अखिल कोमा
में चला जाता है जिसके कारण माता-पिता उसकी सेवा करते रहते हैं। बड़ा भाई अखिल को
हॉस्पिटल में भर्ती कराकर माता-पिता को अपने साथ रहने को कहता है लेकिन माता-पिता
के लिए अपनी संतान का दुःख देखा नहीं जाता और वह उसकी सेवा में ही अपना जीवन काटने
की बात कहते हैं। काहनी के अंत में बेटा अखिल मर जाता है माता-पिता के दर्द और
उनकी सेवा की मार्मिक कहानी है एक दिन अचानक।
5.
मेला (ममता
कालिया) कहानी की समीक्षा
मेला कहानी भारतीय हिंदू संस्कृति के रीति-रिवाजों पर करती करारा
व्यंग्य है। किस प्रकार लोग धर्म के नाम पर अपना मेला चला रहे हैं। लोगों की आस्था
और विश्वास से कैसे खिलवाड़ किया जा रहा है किसी को कोई लेना देना नहीं है। कहानी
में सत्यप्रकाश जो एक पत्रकार हैं, उनकी पत्नी चारू जो एक अध्यापक है के द्वारा
धार्मिक आड़ंबरों का खेल देखते दिखाए गए हैं। कहानी के केंद्र में ये दोनों ही
होते हैं और पूरी कहानी इन्हीं के आस-पास घूमती है और धार्मिक आड़ंबर की पोल
खुलती चली जाती है। कहानी के आरंभ में ही मकर
संक्रांति से एक दिन पूर्व चरनी मासी इलाहाबाद में सत्यप्रकाश के पास पहुँच जाती
है वह संगम में स्नान करके अपने पाप धोना चाहती है। पूरी कहानी में इलाहाबाद में
संगम के किनारे एक महीने चलने वाले माघ मेले का वर्णन है, किस प्रकार साधु-संतों
के बड़े-बड़े पांडाल लगते हैं, उनमें सत्संग होता है किसी में धार्मिक गीत चल रहे
होते हैं, कहीं भंड़ारा हो रहा होता है तो कहीं लोगों के लापता होने की घोषणा होती
रहती है। कहानी में धर्म के नाम पर हो रही लूट और यौन-शोषण को भी दिखाया गया है।
चारू को स्वामी मौन सुंदरी द्वारा अपना हाल स्वामी
रामानन्द की साथ बताना- वे भी अच्छे थे पर उन्हें भी देह की दानवी भूख थी। टेल यू।
एक रात मैं उन्हें जे कृष्णमूर्ति की फिलासफी समझा रही थी। मुश्किल से नौ बजे थे।
उन्होंने मेरे चोंगे में हाथ डाल दिया। बाय गॉड। मैने प्रोटेस्ट किया तो बोले 'कौन देखेगा। किसी को पता नहीं चलेगा।' कहानी
में आगे बताती है कि किस प्रकार लाईट चले जाने पर घटनाएं घटती हैं- स्वामी मौन
सुन्दरी ने कहा, 'जानती हो, एक मिनट को
यहाँ बत्ती चली जाती है तो कितने बलात्कार हो जाते हैं इस बीच।'
इस प्रकार पूरी कहानी इन्हीं सभी तथ्यों की पोल
खोलती और पाठक वर्ग को कई सारे जाने-अनजाने सत्यों से अवगत कराती नज़र आती है।
कहानी आरंभ से अंत तक अपने पाठक को अपने से बाँधकर रखने में सफल कही जा सकती है।
भाषा की बात करें तो पंजाबी के शब्द, अंग्रजी के शब्द और क्षेत्रिय बोली के शब्दों
का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
6. बोलनेवाली औरत (ममता कालिया) कहानी की समीक्षा
बोलनेवाली औरत
अपने व्यापक कलेवर में मध्यवर्गीय परिवार की स्थिति को दिखाती है। कहानी के केंद्र
में कपिल और शिखा दोनों पति-पत्नी के रूप में होते हैं। किस प्रकार दोनों में
प्रेम होता है और फिर विवाह के बाद शिखा पारिवारिक स्थिति में अपने को पीसा सा
मानती है उसके बारे में बताया गया है। बीजी द्वारा बात-बात पर शिखा को टोकना और
फिर कपिल को उसके खिलाफ भड़काना गृह-कलह को दिखाता है। शिखा मन ही मन शादी के बाद
की स्थिति को सोचती रहती है और अपने को कोसती रहती है। कहानी के अंत में बेटे
द्वारा शिखा के मुँह पर घूँसा मार देने के बाद वह खामोश हो जाती है और कहती है-
शिकार तो मैं हूँ तुम सब शिकारी हो।
कहानी पारिवारिक
कलह और घुटन को दिखाती है। कैसे मध्यवर्गीय परिवार में प्रेम-विवाह अभिशाप बन जाता
है और नारी उम्र भर अपने से ही लडती रहती है और अंत में शांत हो जाती है। कहानी
दिल को छू जाती है। संवाद-योजना बिलकुल जीवंत दिखाई पड़ती है। भाषात्मक प्रयोग तो
रचनाकार का विशेष गुण है जिसे उन्होंने अच्छे से दिखाया है।
7. बड़े दिन की पूर्व साँझ (ममता
कालिया) कहानी की समीक्षा
बड़े दिन की पूर्व साँझ अपने
छोटे से कलेवर में एक नवल जोड़े की कहानी है। जिसके विवाह को अभी पाँच दिन ही हुए
हैं। रूप और उसकी पत्नी दोनों एक शाम पार्टी में होते हैं, जहाँ भार्गव नाम का
लड़का रूप की पत्नी के साथ नृत्य करने लगता है और रूप अपने को शराब पीने में
व्यस्त रखता है। पूरी कहानी में भार्गव और रूप की पत्नी का ही संवाद चलता रहता है।
कहानीकार ने नवल जोड़े की स्थिति को इन शब्दों से उजागर किया और पाठक को एक दम
उत्तेजित कर दिया है, जो इस प्रकार हैं- 'हमारी शादी को सिर्फ पाँच दिन गुजरे थे।
साढ़े चार दिन हम एक ही कमरे में कैद रहे थे और उठने के नाम पर बाथरूम तक जाते
थे।' जहाँ तक मेरा मानना है कि कहानी में इन सब बातों की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि
इस लघु कहानी में छोटे संवाद और एक ही दृश्य में पूरी कहानी समाप्त हो जाती है।
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