रविवार, 10 फ़रवरी 2019

कृष्ण कुमार गोस्वामी की पुस्तकों की समीक्षा


पुस्तकः- हिन्दी का भाषिक और सामाजिक परिदृश्य लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः- साहित्य सहकार-दिल्ली   मूल्य- 250 रुपये   पेज- 159,
प्रथम संस्करण- 2009
भाषा के विषय में विद्वानों और विचारको ने अपने अलग-अलग मत अर्थात् विचार प्रकट किए हैं । वास्तव में भाषा एक ऐसा साधन है, जिससे व्यक्ति अपने भावों और विचारों को दूसरे के सामने प्रकट कर सकता है। जहाँ तक हिन्दी भाषा की बात है, आज हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे बडी भाषा बनकर उभरी है। इसी संदर्भ में प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित पुस्तक ‘हिन्दी का भाषिक और सामाजिक परिदृश्य’ प्रकाश में आयी है। इस पुस्तक को कुल 16 अध्यायों में विभाजित करके लिखा गया है। इस पुस्तक में प्रो. गोस्वामी ने हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के साथ-साथ भाषा के सभी स्रोतों के विषय में भी प्रकाश डाला है।
      यह पुस्तक भाषा से जुडे सभी संदर्भों को पाठक के सामने खोलती चली जाती है। चाहे वह शैलीगत, क्षेत्रिय, राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्यों न हो। पुस्तक पाठक के अंदर भाषा से प्रति उठने वाले सभी प्रश्नों को शांत करती चली जाती है।
      पुस्तक में भाषा पर पडने वाले सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सभी प्रभावों को विस्तार से बताया गया है, साथ ही देश और दुनिया में हिन्दी भाषा की स्थिति और विकास पर प्रकाश डाला गया है।
      पुस्तक अपने आप में भाषा की वैश्विकता की तरह अपना वैश्विक रुप भी लिए हुए है, क्योंकि वैश्वीकरण और उदारीकरण के इस समाज में हिन्दी भाषा ने जो अपनी भूमिक अदा की है, उसके बारे में भी बताया तथा समझाया गया है। इतना ही नहीं पुस्तक में मशीनीकरण अर्थात् कंप्यूटर पर हिन्दी प्रयोग और उसके विविध स्वरुपों पर च्रर्चा की गयी है।
      वास्तव में यह पुस्तक अपने नाम की तरह हिन्दी भाषा से जुडे सभी क्षेत्रों को बताती, समझाती और पहचान कराती चली जाती है।



पुस्तकः- अनुवाद विज्ञान की भूमिका,   लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः- राजकमल प्रकाशन –दिल्ली,   मूल्य- 600 रुपये   पेज- 495,
प्रथम संस्करण- 2008
भाषा के संदर्भ में जो भी पढा और लिखा जा रहा है। उसके सरलीकरण के बारे में सभी जानना और समझना चाहते हैं। यह बहुत ही कम विद्वान सोचते हैं कि भाषा का जो रुप परिवर्तित हो रहा है और साथ ही एक देश की भाषा दूसरे देश के लोगों को कैसे समझ आ रही है या ये कहें कि उसके समझने का तरीका क्या है। कैसे एक देश दूसरे देश के साथ व्यापारिक और औद्योगिक रिश्ते बना पा रहा है। इन सभी प्रश्नों के बारे में सोचना आवश्यक है। यह सोचना और समझना केवल अनुवाद और अनुवाद से जुडे अनुवाद शास्त्री और विद्वान ही करते हैं। अनुवाद विषय से जुडी प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित पुस्तक अनुवाद विज्ञान की भूमिका है। इस पुस्तक को कुल तीन खंडो में विभाजित करके लिखा गया है। प्रथम खंड को  सिद्धांत, दूसरे खंड को अनुप्रयोग और तीसरे खंड को विविध अवधारणाएँ नाम देकर बाँटा गया है।
      पुस्तक के प्रथम खंड सिद्धांत में अनुवाद का अर्थ, स्वरुप, क्षेत्र को बताते हुए भारतीय और पाश्चातय विद्वानों के मत भी प्रकट किए हैं। इसके साथ ही अनुवाद के भारतीय और पाश्चात्य सिद्धांतों आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है।
      पुस्तक के दूसरे खंड अनुप्रयोग में साहित्यिक, वैज्ञानक, वाणिज्यिक, कार्यालयी, विधि, न्यालयी, जनसंचार, विज्ञापन आदि में भाषा प्रयोग के साथ उनके अनुवाद की समस्याओं के विषय में उदाहरण सहित विस्तार से समझाया गया है। विचार करें तो यह खंड पुस्तक का मध्य भाग होने के साथ-साथ उसका मूल सार भी है, क्योंकि इस खंड में सरकारी और गैर सरकारी सभी प्रकार के कार्यालयों में होने वाले हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद प्रयोगों को बहुत ही सहजता के साथ समझाया गया है, उसके नियम बताये गए हैं और उनमें होने वाली समस्याओं पर भी प्रकाश डाला गया है। आज मीडिया युग में मीडिया में अनुवाद कितना सार्थक सिद्ध हो रहा है इस पर भी प्रकाश डाला गया है। किस प्रकार दुनिया के किसी भी कोने में घटित होने वाली घटना कुछ ही पल में दुनिया के सभी देशों में सुर्खियाँ बना जाती है। यह केवल अनुवाद के द्वारा ही संभव है।
      पुस्तक के तीसरे खंड विविध अवधारणाएँ में तुलनात्मक अनुवाद, भाषा शिक्षण में अनुवाद, शब्दकोश में अनुवाद आदि विषयों पर विस्तार से बताया गया है। वास्तव में यह पुस्तक अपने नाम की तरह अनुवाद से जुडे सभी क्षेत्रों को बताती और समझाती चली जाती है। यह पुस्तक अपने व्यापक कलेवर में अनुवाद के सभी पक्षों को पाठक के सामने रखती है और सफल भी सिद्ध होती है।

पुस्तकः- आधुनिक हिन्दी विविध आयाम   लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः-आलेख प्रकाशन -दिल्ली   मूल्य- 1100 रुपये   पेज- 840,
प्रथम संस्करण- 2007.
भाषा एक व्यापक विषय है, इस पर जितना काम किया जाए उतना ही कम है। किसी भी भाषा में परिवर्तन होना स्वाभाविक क्रिया है, यह समय, स्थिति, प्रयोग आदि के आधार पर होते रहते हैं। विद्वानों ने भाषा का असली रुप मौखिक माना है। भाषा के मौखिक रुप के साथ उसके लिखित रुप पर भी विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए हैं। किसी भी भाषा को लंबे समय तक जीवित रखने के लिए उसका लिखित रुप ही कारगर सिद्ध होता है और भाषा के इस लिखित रुप के लिए व्याकरण तथा लिपि का सहयोग लिया जाता है। भाषा के शुद्ध रुप से लेखन के लिए उसके व्याकरण के बारे में जानना आवश्यक है। व्याकरण ही भाषा के शुद्ध रुप से लिखने के नियम बताता हुआ चलता है और भाषा में होने वाली त्रुटियों के बारे में बताता तथा समझाता है।
हिन्दी भाषा और उसके व्याकरण से जडे सभी पक्षो पर प्रकाश डालती हुई ऐसी ही पुस्तक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित आधुनिक हिन्दी विविध आयाम है। इस पुस्तक को लेखक ने तीन भागों में विभाजित करके लिखा है। पहला भाग व्याकरणिक संदर्भ है। इसमें एक (01) से सौलह (16) तक अध्याय हैं। दूसरा भाग व्यावहारिक और प्रयोजनमूलक संदर्भ है, इसमें 17 से 29 तक अध्याय हैं। तीसरा भाग साहित्यिक संदर्भ है, इसमें 30 से 34 तक अध्याय हें।
जैसा कि पुस्तक में विभाजित भागों के नाम से ही पता चलता है कि प्रथम भाग में हिन्दी व्याकरण से जुडे सभी पक्षों, भाषा, उद्भव, विकास, लिपि, वर्तनी, शब्द, वाक्य आदि सभी विषयों को उदाहरण सहित समझाने का प्रयास किया गया है।
पुस्तक के दूसरे भाग में व्यावहारिक और प्रयोजनमूलक हिन्दी पर विस्तार से बताया गया है। इसमें पल्लवन, संक्षिप्तीकरण, पदनाम, प्रतिवेदन आदि को उदाहरण सहित समझाया गया है। तीसरा भाग साहित्यिक संदर्थ है, इसमें  साहित्य का स्वरुप, अलंकार, छंद, शब्द शक्ति और हिन्दी के प्रमुख साहित्यकरों के नाम और उनकी रचनाओं के बारे में जानकारी दी गयी है।
      वास्तव में यह पुस्तक हिन्दी भाषा से जुडे सभी विद्यार्थी और विद्वानों के लिए आवश्यक निधि के रुप में है। इसमें हिन्दी भाषा और उसके व्याकरण से जुडे सभी पक्षों को उदाहरण सहित बताया और समझाया गया है।

पुस्तकः- शैक्षिक व्याकरण         लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः-आलेख प्रकाशन -दिल्ली   मूल्य- 200 रुपये   पेज- ,
प्रथम संस्करण- 2001.
     भाषा अध्ययन के लिए मुख्तः तीन संदर्भ निश्चित किए जा सकते हैं- पहला, सैद्धांतिक संदर्भ जिसके अंतर्गत भाषा का अध्ययन भाषावैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर किया जाता है। दूसरा, विवरणात्मक संदर्भ जिसके अंतर्गत भाषा –विशेष का विवरण दिया जाता है और तीसरा, शैक्षणिक संदर्भ जिसके अंतर्गत भाषा अधिगम और शिक्षण की दृष्टि से भाषा का विवेचन होता है। यद्यपि इन तीनों के अपने अलग-अलग संदर्भ हैं और अपने अलग-अलग लक्ष्य हैं किंतु प्रयोग और व्यवहार के परिप्रेक्ष्य में इनमें एक सुनिश्चित अनुक्रम भी होता है। भाषा वैज्ञानिक सिद्धांत से भाषा विवरण प्राप्त होता है और फिर भाषा विवरण से भाषा शिक्षण को सुनिश्चित ढंग से दिखने की दृष्टि मिलती है। इन तीनों संदर्भों के आधार पर तीन प्रकार के व्याकरण मिलते हैं। सार्वभौमिक व्याकरण, भाषा विशेष का व्याकरण और शैक्षिक व्याकरण। शैक्षिक व्याकरण प्रथम दो व्याकरणों से अंतर्दृष्टि, प्रणाली, अनुप्रयोग, विश्लेषणात्मक पद्धति, संदर्भपरकता प्राप्त कर अपने उद्देश्य के अनुरुप भाषा-विशेष का विवेचन करता है। उसमें शिक्षक की विधि और तकनीक भी अपनी भूमिका निभाती है।
     हिन्दी भाषा शिक्षण और उससे जुडे अनेक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही पुस्तक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित शैक्षिक व्याकरण है। इस पुस्तक को लेखक ने दो खंडो में विभाजित करके लिखा है। पहला खंड शैक्षिक व्याकरण के संदर्भ में है। इस खंड में नौ अध्याय हैं। इसमें मातृभाषा, प्रथम भाषा और अन्य भाषा शिक्षण के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी भाषा का अध्ययन-अध्यापन है। दूसरा खंड  व्यावहारिक हिन्दी के संदर्भ में है, इसमें भी नौ अध्याय हैं। इसमें भाषा-संरचना की अपेक्षा इसकी व्यावहारिक उपयोगिता पर अधिक बल दिया गया है। इसके साथ ही इसमें भाषा की शैलियों और प्रयुक्तियों के संदर्भ में विकसित होती हुई हिन्दी और उसके विविध आयामों से परिचय दिया गया है।
यह पुस्तक हिन्दी भाषा ज्ञान के साथ-साथ हिन्दी अध्यापन के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। यह पुस्तक हिन्दी शिक्षण से जुडे अध्यापकों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी है। इस पुस्तक में विषयगत यथासंभव उदाहरण भी दिए गए हैं।
पुस्तकः- अनुप्रयोगिक हिन्दी       लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः-अरुणोदय प्रकाशन -दिल्ली  
प्रथम संस्करण- 2002.

     भाषा का अपना व्यापक फलक है। वह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग प्रयोग और विचार संप्रेषित करती चली जाती है। भाषा के विविध प्रयोग और उसकी संरचना को समझना कोई आसान कार्य नहीं है। उसके लिए भाषा के व्याकरण के साथ-साथ उसके विविध आयामों और प्रयोगों को भी समझना आवश्यक है। भाषा से जुडे इन सभी तथ्यों पर विद्वानों ने खूब लिखा है।
     हिन्दी के विभिन्न अनुप्रयोगों को बतानें और उससे जुडे अनेक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, ऐसी ही पुस्तक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित अनुप्रायोगिक हिन्दी है। इस पुस्तक में पंद्रह अध्याय हैं। इसमें हिन्दी के व्याकरणिक स्वरुप और शब्द संपदा के विवेचन के साथ-साथ हिन्दी के विविध रूपों का अध्ययन हुआ है। विविध कार्यक्षेत्रों में संक्षेपण और पल्लवन की आवश्यकता रहती ही है लेकिन अनुवाद आज की सामाजिक आवश्यकता बन गया है। इसे भी ध्यान में रखते हुए लेखक ने इसे अध्ययन का क्षेत्र बनाया हैं। विद्यार्थियों में वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ अधिक होती है, इसीलिए लिपि और उसकी व्यवस्था का ज्ञान कराना अपेक्षित है। पदनाम और संक्षिप्तीकरण नए विषय के रूप में उभरे हैं और कंप्यूटर की उपादेयता तो सर्वविदित है।
      उपर्यक्त इन सभी ज्वलंत विषयों को ध्यान में रखते हुए लेखक ने उदाहरण सहित सभी पक्षों को समझाने का अथक प्रयास किया है। आकार में छोटी यह पुस्तक विषय की व्यापकता और वर्तमान में भाषा संबंधी होने वाले प्रयोगों तथा उनकी समस्याओं का समाधान देती दिखाई पडती है।
पुस्तकः- रामचंद्र शुक्ल का शैली .......   
लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः-अभिव्यक्ति प्रकाशन -दिल्ली     मूल्यः- 250 रुपये
प्रथम संस्करण- 1996.

     हिन्दी विद्वानों और आलोचकों ने शुक्ल साहित्य का अध्ययन तो किया है, किंतु उनकी भाषा के संबंध में अपनी लेखनी नहीं उठाई है। यदि कहीं अध्ययन किया भी है तो वह छिटपुट रूप में, जिससे शुक्लजी की साहित्यिक भाषा का समग्र रूप सामने नहीं आ पाता। वास्तव में शुक्लजी की भाषा का अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण है और उसकी वर्णनात्म तथा सर्जनात्मक विशेषताओं को जानना आवश्यक है।
     शुक्ल जी की भाषा और उनकी शैली को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही पुस्तक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित शुक्ल जी का शैलीगत अध्ययन है। इस पुस्तक को लेखक ने दो खंडो में विभाजित करके लिखा है। पहला खंड अलोचना का नया सिद्धांत और प्रणालीः शैलीविज्ञान के संदर्भ में है। इस खंड में पाँच अध्याय हैं। दूसरा खंड  अनुप्रयोगः आचार्य शुक्ल की साहित्य भाषा के संदर्भ में है, इसमें सात अध्याय हैं। इस पुस्तक में शुक्लजी का गद्यकार रूप लिया गया है। उनके निबंधों तथा व्यावहारिक आलोचना को प्रतिपाद्य विषय बनाया गया है। शुक्लजी के चिंतामणी भाग एक, दो और तीन, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास और जायसी ग्रंथावली की भूमिक मुख्य आलोच्य ग्रंथ हैं तथा रस मीमांसा, हिन्दी साहित्य का इतिहास, आदर्श जीवन आदि ग्रंथों के उदाहरण भी लिए गए है।
इस पुस्तक में सुगठित, प्रांजल और प्रौढ़ भाषा का समूचा अध्ययन तथा विश्लेषण किया गया है। इसमें शुक्लजी की भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन के साथ-साथ उसकी साहित्यिक और सर्जनात्मक विशिष्टताओं की जानकारी भी प्राप्त होती है। विचार करें तो हम पाते हैं कि इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति शैलीविज्ञान से ही संभव है जिससे भाषा और साहित्य के परस्पर संबंध उद्घाटित होते हैं। इस पुस्तक में शैलीविज्ञान के सिद्धांतों का अध्ययन अत्याधुनिक संदर्भ में किया गया है।
यह पुस्तक कई मायनों में शैलीविज्ञान का आधार बिंदू है। इस पुस्तक की रचना का फलक सत्तर के दशक से में हुआ। जब शैलीविज्ञान भारत के गर्भावस्था में था और उस समय विश्व में अमरीकी, रूसी और फ्रांसीसी विद्वानों ने ही कुछ छिटपुट प्रयास किए थे। भारत में इस विषय पर यह प्रथम कार्य कहा जा सकता है। इसके बाद शैलीविज्ञान पर भारत के विश्वविद्यालों में इस विषय पर शोध कार्य ने जोर पकडा और शोध कार्य शुरु हुए। वास्तव में यह पुस्तक शैलीविज्ञान के क्षेत्र में आधार ग्रंथ माना जा सकता है। यह पुस्तक शैलीविज्ञान से जुडे सभी पहलुओं को उदाहरण सहित समझाती हुए दिखाई देती है।
पुस्तकः- …. .......    
लेखकः- कृष्ण कुमार गोस्वामी
प्रकाशकः- वाणी प्रकाशन -दिल्ली     मूल्यः- 125 रुपये
प्रथम संस्करण- 1993.

     स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी प्रयोग क्षेत्रों का विस्तार हुआ है। अब हिन्दी केवल सर्जनात्मक साहित्य तक सीमित न रहकर अन्य क्षेत्रों की विशिष्ट प्रयुक्ति के रूप में विकसित होने लगी है। ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न आयामों के विकास के कारण हिन्दी क्षेत्रों का भी विकास हुआ है। इस दृष्टि से हिन्दी शिक्षण तक सीमित न रहकर उसका प्रयोजनमूलक रूप भी हमारे सामने आया है।
     भाषा और उसके विविध प्रयोगों को ध्यान में रखते हुए ऐसी ही पुस्तक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी द्वारा रचित ............... है। इस पुस्तक को लेखक ने दो खंडो में विभाजित करके लिखा है। पहला खंड व्यावहारिक हिन्दी के संदर्भ में है। इसमें हिन्दी के व्यावहारिक और प्रयोजनमूलक पक्ष का विवेचन किया गया है। दूसरा खंड रचना के संदर्भ में है। इसमें विद्यार्थियों की सर्जनात्मक शक्ति के विकास के लिए पत्र-लेखन और निबंध लेखन को रखा गया है।
      यह पुस्तक कि रचना हिन्दी भाषा और उसके व्याकरण को ध्यान में रखकर की गई है। यह पुस्तक व्याकरण और उससे जुडे सभी पक्षों को उदाहरण सहित समझाने का प्रयास करती है।
समीक्षा

 अंग्रेजी-हिन्दी phrasal शब्दकोश’ एक नज़र में
डॉ. नीरज भारद्वाज
भाषा अपने आप में एक व्यापक विषय है। जब हम किसी भी भाषा के बारे में जानना व समझना चाहते हैं तो हमारे सामने उस भाषा से जुड़े नए-पुराने कितने ही ऐसे शब्द आ जाते हैं जिनके बारे में हम जानते जरूर है लेकिन उसका शाब्दिक अर्थ नहीं जानते। ऐसी कठिनाई के समय हम उस भाषा से जुड़े शब्दकोश का सहारा लेते हैं। शब्दकोश ही एकमात्र ऐसा सहारा होता है जो उस भाषा से जुड़े शब्दों का सरलीकरण करके पाठक के सामने रख देता है साथ ही वह उसे उलझन से निकालकर नया रास्ता दे देता है।
यह बहुत ही कम विद्वान सोचते हैं कि किसी भाषा का जो रुप परिवर्तित हो रहा है और उसमें जो नए-नए शब्द प्रवेश कर रहे हैं उनका मूल अर्थ तथा प्रयोग क्या है। वह भाषा पर किस प्रकार अपना प्रभाव छोड़ते हैं और अलग-अलग विषयों में उनका क्या अर्थ हो जाता है। विचार करें तो देश की आजादी के बाद भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिन्दी प्रयोग क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हुआ है। अब हिन्दी केवल सर्जनात्मक साहित्य तक सीमित न रहकर अन्य क्षेत्रों की विशिष्ट प्रयुक्ति के रूप में विकसित होने लगी है। ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न आयामों के विकास के कारण हिन्दी क्षेत्रों का भी विकास हुआ है। उसमें नए-नए शब्द और उनके प्रयोग बढ़ रहे हैं।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी, अनुवाद-शास्त्री और अंतरराष्ट्रीय विद्वान प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी का  अंग्रेजी-हिन्दी phrasal शब्दकोश’ प्रकाश में आया है। इसमें शब्द और वाक्यांश विभिन्न स्रोतों यानी समाचारपत्र, पत्रिकाओं, पाठ्य पुस्तकों और अन्य शैक्षणिक किताबों से लिए गए हैं। इसमें लगभग दस हजार वाक्यांशों का एक संग्रह है। विचार करें तो इन वाक्यांशों का दिन-प्रतिदिन के भाषण और लेखन में उपयोग किया जाता है। इतना ही नहीं इसमें वाक्य का प्रयोग अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषा में दिए गए हैं। यही इस शब्दकोश की सबसे बड़ी योग्यता है।
बदलते समय के साथ अंग्रेजी-हिंदी का अध्ययन करने वाले अध्येताओं के लिए अच्छे शब्दकोशों की आवश्यकता रहती है। यह शब्दकोश शैक्षिक समुदाय यानी विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्कूल के शिक्षकों के साथ ही विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्कूल के छात्रों के लिए न केवल उपयोगी है, बल्कि जनसंचार और पत्रकारिता, हिंदी अधिकारी और अनुवादकों, प्रबंधन कर्मियों, प्रशासनिक, बैंकिंग और वाणिज्यिक अधिकारियों इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी से जुड़े लोगों के लिए भी सहायक है। यह शब्दकोश देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों के पुस्तालयों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

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