हिंसा नहीं साथ चाहिए
डॉ. नीरज भारद्वाज
धर्म, आस्था, राजनैतिक हानि-लाभ, साम्प्रदायिकता आदि के नाम पर यह देश
कब तक ऐसे दंगों को सहता रहेगा। यह सवाल बार-बार जहन में उठता है और दब जाता है।
आखिर यह हिंसा कब रुकेगी। कितने ही साहित्यकार और मेरे लेखक मित्र ऐसे विषयों पर
लिख चुके हैं। लेकिन लोगों की समझ पता नहीं किस दिशा की ओर है। एक बार विभाजन का
तांडव देख चुके देशवासी क्या फिर ऐसा ही करने जा रहे हैं। ऐसी हिंसाओं में कितनी
ही माताओं के लाल, कितनी ही सुगानों के सुहाग और कितनी ही बहनों के भाई जाने
अनजाने भगवान को प्यारे हो जाते हैं। क्या देशवासियों को कोई फर्क नहीं पडता। यदि
हिंसा, हत्या और जोर-जबरदस्ती किसी भी चीज का समाधान होता तो आज पूरे विश्व में
जंगल राज होता। लेकिन जिस तरीके से भारतीय जनता अपना आपा खोकर ऐसी हिंसाओं को जन्म
देती है तो यह बडे ही शर्म की बात है। यदि देश का कोई भी शहीद स्वतंत्रता सैनानी
जीवित होता और हमारे इस दंगे आचरण को देखता तो वह अपने किये हुए पर जरुर पछताता,
क्योंकि उसने ऐसा सोचा भी नहीं होगा।
उत्तर प्रदेश में हुई
हिंसा देश के लिए शर्मसार कर देने वाली घटना है। सभी राजनैतिक दल हिंसा को देख रहे
हैं, मरते लोगों पर राजनीति कर रहे हैं। यह समय देशवासियों को समझाने उन्हें एकजुट
रहने के लिए कहने का है। एक तरफ तो देश सीरिया के हमले को गलत बता रहा है, वहीं
दूसरी ओर अपने ही देश में, जो हो रहा है क्या यह सीरिया से कम है। रुपये का दिवाला
निकल चुका है, राजनीति ठंडे बस्ते में पडी है, राजनेता मौके की तलाश में है, जनता
मर रही है, ब्यान बाजी जारी है। एक ओर संदेश आने वाला है, जांच कमेटी बैठा दी गई
है, लोग शांति बनाए रखे।
पत्रकारिता और पत्रकार
लोगों को समझाने और उन्हें सही खबर दिखाने का प्रयास करती है। लेकिन पत्रकारों पर
जानलेना हमला करके उन्हें भी नहीं छोडा जा रहा है। हिंसा में हमारा एक पत्रकार
साथी सत्य से अवगत कराता-कराता दुनिया ही छोड गया। इसका जिम्मेदार कौन है। ऐसे हाल
को देख शहीद देशभक्त गणेश शंकर विद्यार्थी जी याद आ गए।
यदि समय रहते सभी कुछ ठीक
नहीं हुआ और धर्म या आस्था के नाम पर ऐसे ही दंगे होते रहे, तो वह दिन दूर नहीं कि
हम अपनी आने वाली पीढी के लिए केवल और केवल हिंसा ही छोड जायेगें। हमारा
देशवासियों से एक ही निवेदन है कि वह ऐसी हिंसाओं को रोके और यदि कहीं सूत्रों से
पता चलता भी है, तो उसे रोकने का प्रयास करें। सच्चे अर्थों में यही देशभक्ति है।
मित्रों माला का हर एक मोती अपना स्थान रखता है और माला में से एक मोती निकल जाए
तो उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता है।