रविवार, 29 सितंबर 2013

सोशल मीडिया और हम

सोशल मीडिया और हम डॉ. नीरज भारद्वाज वर्तमान में संचार तकनीक एवं माध्यमों में एक अद्भुत व अभूतपूर्व परिवर्तन देखा गया हैं I आज तकनीक ने भौतिक सीमाओं को तोड़कर पूरी दुनिया को एक-सूत्र में पिरो दिया है I इसी के चलते मीडिया का क्षेत्र आज शिक्षा तथा समाज की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया हैI आज मीडिया का क्षेत्र केवल पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आधुनिक युग का एक ऐसा सत्य है, जो मानव-जीवन तथा इससे जुड़े लगभग सभी क्षेत्रों से किसी न किसी रूप से जुड़ा हुआ हैI पिछले कुछ समय से मीडिया के क्षेत्र में काम करने की परिकल्पना में भी बड़ा परिवर्तन देखा गया है। जो दिनों दिन बढ ही रहा है। भारतीय मीडिया के पुराने परिपेक्ष्य पर नजर डाले तो हमें पता चलता है कि हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभिक काल भारतीय नवजागरण अथवा पुनर्जागरण का काल था। उस दौरान भारत की राष्ट्रीय, सामाजिक, जातीय तथा भाषायी चेतना जागृत हो रही थी। विचार किया जाए तो इस दौर की पत्रकारिता एक मिशन के तौर पर काम कर रही थी और लोगों के बीच जनजाग्रति का एक साधन थी। वास्तव में उस दौर के सभी पत्रकारों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में जो आयाम और आदर्श स्थापित किए, वे आज भी पत्रकारिता की उदीयमान पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन का स्त्रोत हैं। लेकिन धीरे-धीरे समाज परिवर्तन, सोच परिवर्तन, साधन परिवर्तन आदि के कारण मीडिया और उसके साधन अपना स्वरुप बदल रहे हैं। आज सोशल मीडिया का युग है। सोशल साइटस ही लोगों से सीधे तौर पर जुडी हैं। वही लोगों को जाग्रत कर उनके विचारों को हवा देकर फैलाने का काम कर रही है। आज हर तरफ सोशल मीडिया अथवा न्यू-मीडिया के सकारात्मक पक्षों पर कम चर्चा हो रही है, जबकि उसके नकारात्मक पक्षों की अधिक विचार किया जा रहा है। आज लोग सोशल साइटस के माध्यम से अपने विचार प्रकट कर रहे हैं, चाहे वह सरकार के खिलाफ हो या किसी अन्य घटना के प्रति। वास्तव में सोशल मीडिया ने अभी तक विभिन्न आंदोलनों और सामाजिक बहसों को चलाने में युवाओं को एक मंच प्रदान किया है। जिसका उपयोग सरकार की कुनीतियों के विरूद्ध आंदोलनों को खड़ा करने के लिए भी किया गया है। यही सरकार की फिक्र का भी कारण है। सरकार आए दिन सोशल मीडिया पर उंगली उठाती है और यह कहने से नहीं चुकती की सोशल मीडिया को सही ढंग से प्रयोग में लाए नहीं तो इस पर भी लगाम लगा दी जाएगी। सरकार का सोशल मीडिया के प्रति कडा व्यवहार या ब्यान देना बिलकुल ठीक है, क्योंकि कुछ शरारती तत्व अपनी उट-पटांग हरकतों से देशवासियों को गुमराह करने की कोई कसर नहीं छोडते ऐसे में सरकार यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाएगी तो क्या हम ऐसी ही लोगों के हाथों की कठपुतली बन कर रह जाएगें, जो वो सोशल मीडिया के माध्यम से करना चाह रहे हैं। सोशल मीडिया आम आदमी का मंच है। लेकिन इसे गलत रुप से प्रयोग करके लोग इसको भी बंद कराने में जुटे हैं। एक समय था जब टीवी पर मनोरंजन के कार्यक्रम लोग फ्री में देखते थे और एक आज का समय है कि आप हर एक चैनल देखने के पैसे दे रहे हो, क्या लोगों की समझ में नहीं आ रहा। ये भौतिकवादी युग है यहां किसी की नहीं चलती सभी कुछ बाजार की गिरफ्त में है। सरकार नीतियां बनाती है फिर उन पर अमल होता है और जनता उनके प्रयोग का साधन होती है। यदि सोशल मीडिया के साथ लोग ऐसे ही उट-पटांग काम करते रहे तो हो सकता है भविष्य में आपको अलग-अलग साइट पर काम करने के लिए अलग-अलग पैसे देने होगे। हमें यह ध्यान रखना जरुरी है कि हमारे देश की कितनी जनता आज भी दो वक्त की रोटी खाने में सक्षम नहीं है। फिर वह कैसे इन सभी चीजों से जुडेंगे। टीवी चैनल तो दूर हो ही गए हैं, अब इसे भी दूर कर दो। यह सभी प्रयास केवल बडे लोगों का पेट भरने के लिए है। इस पर सोचना बहुत जरुरी है।

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