ठाकुर का कुआँ (प्रेमचंद)
सन् 1932
में प्रकाश में आई प्रेमचंद की कहानी 'ठाकुर का
कुआँ' अपने छोटे से कलेवर में बड़ी बात कहती नजर आती है।
कहानी ग्रामीण परिवेश मं उबरे जात-पात और ऊँच-नीच के बीच भेद को उजागर करती है।
कहानी में दलित जोखू और उसकी पत्नी गंगी मुख्य पात्र है। दलित जोखू दूषित पानी
पीने को मजबूर है। जबकि पत्नी उसे वह पानी नहीं पीने देती और हट करके ठाकुर के
कुएँ से पानी लेने जाती है। डरी हुई गंगी जैसे ही कुएँ से पानी निकालने लगती है और
पानी का घड़ा भरकर कुएँ के ऊपर तक आ जाता है तो ठाकुर का दरवाजा खुलता है जिससे
गंगी के हाथ से रस्सी छूट जाती है और घड़ा फूट जाता है। घड़ा गिरते ही वह वहाँ ले
दौड़ी घर को आती है तथा जोखू को दूषित पानी पीते देख उसे रोक नहीं पाती है।
दलित
विमर्श को लेकर प्रेमचंद की कहानी 1930 में प्रकाशित सद्गति भी है। इनके आलावा भी
हिंदी में दलित विमर्श को लेकर बहुत सारी कहानियाँ प्रकाश में आई हैं। प्रसाद की
कहानी विरामचिह्न, ओम प्रकाश बाल्मीकि की काहनी अम्मा, यह अंत
नहीं, खानाबदोश। ज्ञानरंजन की कहानी मनु आदि।
प्रेमचंद
ग्रामीण परिवेश पर कहानी लिखने वाले रचनाकार रहे हैं उनका मूल उद्देश्य ग्रामिणों
की समस्याओं को सभी के सामने लाना रहा है। कहानी में बहुत से बिंदुओं पर विचार
किया गया है, जो इस प्रकार है-
1. जातिगत
भेदभाव।
2. निम्न
वर्ग और उच्च वर्ग का भेद।
3. समाज में
असमानता को दिखाना।
4. कृषक या
मजदूर की दशा।
5. आर्थिक
विपन्नता।
जमींदारी प्रथा।
ईदगाह
‘ईदगाह‘ कहानी में बूढ़ी दादी अमीना बालक हामिद की संवेदनशीलता, उसकी स्वयं की सहजता, बालमन
और सामाजिक स्थिति को अपने में समेटे हुए है। कहानी का हामिद मानव मुक्ति के संघर्ष में सहायक बनकर उभरता है। इसलिए ‘ईदगाह‘ का हामिद भी कोरा आदर्श नहीं है, यथार्थ है। कहानी को एक चार
वर्षीय अनाथ की बताई गई है, वह अपनी दादी अमिना के साथ रहता है। यही
हामिद, कहानी का नायक है, हाल ही में अपने माता-पिता को खो दिया है; उनकी दादी ने उन्हें बताया कि उनके पिता ने पैसे
कमाने के लिए छोड़ दिया है और उनकी माँ अल्लाह के लिए सुंदर उपहार लाने के लिए गई
है।
कहानी की
शुरूआत ईदगाह जाने से शुरू होती है। गाँव के सभी बच्चे ईदगाह के लिए तैयार है। इसलिए तीन पैसे होने पर भी हामिद अपने भाग्य को नहीं कोसता न
साथियों को हीन समझता है। दूसरे लड़के सवारी, कैंडीज और खूबसूरत मिट्टी के खिलौने पर अपनी जेब
से पैसा खर्च करते हैं, और हमीद को तंग करते हैं जब वह क्षणिक आनंद
के लिए पैसे की बर्बादी के रूप में खारिज करते हैं। जबकि उनके दोस्त खुद का आनंद
ले रहे हैं। वह केवल इतना कहता है-“खिलौने मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तरे चकनाचूर हो जाएँ।“ यह हामिद का अपना आत्मसंघर्ष है। हामिद अपने
प्रलोभन पर काबू पाकर दादी रोटियां पकाने के दौरान अपनी उंगलियों को जलती है, उस
दृश्य को याद करता है और चिमटा खरीद लेता है। हामिद के दोस्तों ने उन्हें अपनी खरीद के लिए
चिढ़ाया, लेकिन हामीद ने खिलौनों के गुणों को अपने
चिमटे से कम ही आंका। जब हामिद ने चिमटा अपनी दादी को उपहार में दिए। पहली बार वह
उसे मेले में खाने या पीने के लिए कुछ खरीदने के बजाय खरीदारी करने के लिए डांटती
है, जब तक हामिद उसे याद नहीं दिलाता कि वह
अपनी उंगलियों को रोज कैसे जलाती है। वह इस पर आँसू बहाने लगती है और उसे अपनी दया
के लिए आशीर्वाद देती है। यही कहानी का
यथार्थ है।
नमक का दारोगा
नमक का दारोगा कहानी समाज की यथार्थ स्थिति को उद्घाटित करती है। कहानी के नायक मुंशी वंशीधर एक ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति है, जो समाज में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिशाल कायम करता है। पंडित अलोपीदीन दातागंज के सबसे अधिक अमीर और इज्जतदार व्यक्ति थे। जिनकी राजनीति में भी अच्छी पकड़ थी। अधिकांश अधिकारी उनके अहसान तले दबे हुए थे। अलोपीदीन ने धन के बल पर सभी वर्गों के व्यक्तियों पर अपनी धाक जमा रखी थी। दारोगा मुंशी वंशीधर उसकी नमक की गाड़ियों को पकड़ लेता है और अलोपीदीन को अदालत में गुनाहगार के रूप में प्रस्तुत करता है, लेकिन वकील और प्रशासनिक आधिकारी उसे निर्दोष साबित कर देते हैं, जिसके बाद वंशीधर को नौकरी से बेदखल कर दिया जाता है। इसके उपरांत पंडित अलोपीदीन, वंशीधर के घर जाकर माफी माँगता है और अपने कारोबार में स्थाई मैनेजर बना देता है तथा उसकी ईमानदारी और कर्त्तव्य निष्ठा के आगे नतमस्तक हो जाता है।
कफन
प्रेंमचंद की कहानी 'कफन' ऐसे बाप-बेटों की कहानी है, जो बेहद गरीब हैं। जिसमें बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृत्ति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अंधकार में लय हो गया था। जब निसंग भाव से कहता है कि वह बचेगी नहीं तो माधव चिढ़कर उत्तर देता है कि मरना है तो जल्दी ही क्यों नहीं मर जाती, देखकर भी वह क्या कर लेगा। लगता है जैसे कहानी के प्रारंभ में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं और भाव का अँधकार में लय हो जाना मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है। इस औरत ने घर को एक व्यवस्था दी थी, पिसाई करके या घास छीलकर वह इन दोनों बेगैरतों का दोजख (पेट) भरती रही है। और आज ये दोनों इंतजार में है कि वह मर जाये, तो आराम से सोयें। आकाशवृत्ति पर जिंदा रहने वाले बाप-बेटे के लिए भुने हुए आलुओं की कीमत उस मरती हुई औरत से ज्यादा है। उनमें कोई भी इस डर से उसे देखने नहीं जाना चाहता कि उसके जाने पर दूसरा आदमी सारे आलू खा जायेगा।
पूस की रात
प्रेंमचंद ने 'पूस की रात' कहानी में भारतीय किसान की लाचारी उसके जीवन कड़ला सच तथा उसके रहन-सहन का यथार्थ चित्रण किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो कहानी कृषक जीवन, उसकी त्रासदी और यथार्थ को दिखाती नज़र आती है। कहानी का नायक हल्कू एक गरीब किसान है, जो अपनी पत्नी के साथ दिखाया गया है। वह खेती करता है पर आमदानी कुछ भी नहीं थी। उसकी पत्नी खेती करना छोडकर और कहीं मजदूरी करने को कहती थी। हल्कू के लगान के तीर पर दूसरों की खेती थी। खेत के मालिक का बकाया था। हल्कू ने अपनी पत्नी से तीन रुपए माँगे। पत्नी ने देने से इनकार किया, ये तीन रुपिए जाडे की रातों से बचने के लिए, कंबल खरीदने के लिये जमा करके रखे थे। लेकिन जमींदार आकर उन्हें ले जाता है। बाद में पूस की रातें जब आती हैं, तो किसान के पास उससे बचने का कोई साधन नहीं था। वह खेत में अलाव जलाता है तो कभी अपने कुत्ते को गोद में लेकर उससे सर्दी भगाने का काम करता है। लेकिन ठंड़ कम होने का नाम नहीं लेती। रात इतनी बड़ी है कि अब कट भी नहीं रही है। जैसे ही सुबह आँख लगती है तो देखते है कि रात में खेत को नीलगाय बर्बाद कर चुके होते हैं। यह कहानी खेती-किसानी और कृषक जीवन की कठिनाई बयान करती है, साथ ही पयालनवाद पर चोट करती है और लोगों को मजदूरी की ओर ले जाती है। गाँव में जमींदार का रौब दिखाया गया है। लगान, ऋण की मार किसान पर हमेशा बनी रहती है।
पंच परमेश्वर
यह कहानी अलगू चौधरी और जुम्मन सेख दो मित्रों की है। दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो यह कहानी दो धर्मों और उनके बीच आपसी विश्वास, प्रेम, रहन-सहन को भी दिखाती है। नाम के अनुसार दोनों एक हिन्दू धर्म के और दूसरा मुस्लिम धर्म के हैं। फिर भी दोनों के बीच काफी गहरी मित्रता है। जुम्मन सेख की एक खाला (मासी) जो दूर के रिश्तेदार में था, परन्तु उस बुढ़िया का कोई और नहीं था। बुढ़िया के पास काफी जमीन जायदाद थी। जुम्मन का परिवार खाला का विशेष खातिर सम्मान रखते था। जुम्मन अपनी खाला से कह सुनकर कुछ दिनों के बाद जमीं के रजिस्ट्री अपने नाम करवा लिया।
रजिस्ट्री के कुछ दिनों के बाद बुढ़िया की खातिर एवं सम्मान में कमी होने लगी। एक दिन ऐसा भी देखने को आया की अब बुढ़िया को खाने और पहनने के भी लाले पर गये और सब ताने देने लगे। रोज-रोज के तानों से तंग आकर बुढिया ने जुम्मन सेख से पंचायत बैठाने की बात कही। जुम्मन सेख को यह विश्वास था की मेरे विरोध में गाँव का कोई भी पंच फैसला नहीं करेंगे।
एक दिन किसी बात की परवाह न करते हुए बुढिया ने जुम्मन के दोस्त अलगू चौधरी के पास पहुँचकर साँस लेकर बोली बेटा तुम ही मेरा पंच बनकर न्याय कर मुझ पर उपकार करो। क्योंकि गाँव का कोई भी व्यक्ति मेरे साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है। इस पर अलगू चौधरी ने कहा की तुम तो जानती तो के मैं जुम्मन सेख का परम मित्र हूँ, मैं उनके खिलाफ कैसे बोल सकता हूँ। इसपर बुढिया ने अलगू चौधरी से कहा कि दोस्ती टूटने के भय से इमान की बात नहीं कहोगे, इमान से बढकर क्या कोई दोस्ती होती है। बुढ़िया की यह बात अलगू चौधरी को झकझोर कर रख दिया और अलगू चौधरी ने बुढ़िया को पंच बनने की हाँ भर दी।
अगले ही दिन संध्या समय पीपल वृझ के नीचे पंचायत बुलाई गयी। पंचायत में जुम्मन सेख से पुछा गया की आप पंच किसे मानते हो? इसपर जुम्मन सेख ने कहा की खाला जिसे चाहे उसे पंच चुन ले। तो इसपर बुढिया ने कहा की मैं अलगू चौधरी को अपना पंच चुनती हूँ। वह जो न्याय देगा मुझे मान्य है। यह सुनकर जुम्मन सेख बहुत ही प्रसन्न हुए की न्याय मेरे तरफ ही होगा। परन्तु कहा जाता है की पंच के मुँह से जो न्याय होता है वह स्वयं परमेश्वर का होता है। अलगू चौधरी ने पंच के पद पर बैठकर कहा की बुढिया के जमीन जायदाद से इतना तो अवश्य ही आय होता है जिससे की बुढिया का जीवन अच्छे से चल सके और उसका गुजर-बसर हो सके, इसका मतलब जुम्मन सेख को अपनी खाला को मासिक खर्च देना उचित है और यही पंच की वाणी है।
जुम्मन सेख यह सब सुनकर दंग रह गया और पंचायत समाप्त हो गई। दोनों मित्रों के बीच दरार पड़ गई। संजोगवश अलगू चौधरी ने खेती के वास्ते एक जोड़ी बैल खरीद कर लाए बैलों को देखने के लिए गाँव के लोग प्रतिदिन आने लगे। संजोग से एक दिन एक बैल की मृत्यु हो गयी। अब मात्र एक बैल बचा। उसे भी अलगू चौधरी ने संभु साहू के हाथ उधर बेच दिया। संभु साहू ने बैल से इतना अधिक काम लिया की बैल एक दिन स्वर्ग सिधार गये। अलगू चौधरी जब संभु साहू से बैल की कीमत मांगते तो बातें टालकर समय बिताने लग जाते। एक दिन अलगू चौधरी की पत्नी संभु साहू के घर जाकर बैल की कीमत मांगी तो उलटे संभु साहू की पत्नी के कही, कम्बक्त ने ऐसा बैल दिया के जिसके चलते हमारा सारा धन चोर लूट ले गये। व्यापार करते समय रास्ते में ही माल से भरी बैलगाड़ी खींचते-खींचते रात में बैल ने अपने प्राण त्याग दिए। जिसके करण रात में चोर सारा धन लूट ले गये। इस तरह से बात काफी आगे बढ़ गयी और उन्होंने कीमत देने से इंकार कर दिया।
लाचार होकर चौधरी ने पंचायत बुलाई, फिर वही पीपल के पेड़ के नीचे संध्या में पंच लोग न्याय देने के लिए बैठ गये। अलगू चौधरी से पुछा गया भाई आप किसे पंच मानते हो। उसने साफ़ शब्द में कह दिया की संभु साहू जिसे चाहे पंच मान ले इसमें मुझे कोई ऐतराज़ नहीं। संभु साहू ने जुम्मन सेख को ही पंच चुना। अब अलगू चौधरी को लगने लगा की जुम्मन सेख उसके पक्ष में न्याय नहीं देगा। जुम्मन सेख भी इस बात पर उछल पड़ा की अब न्याय मेरे हाथ में है। निश्चय ही अलगू चौधरी से बदला लूँगा।
परन्तु पंच के पद पर बैठते ही जुम्मन सेख के आत्मा से ऐसे न्याय निकला की सब लोग दंग रह गये। जुम्मन ने सभी बातों को भुलाकर अलगू चौधरी के पक्ष में न्याय दिया की बैल कमजोर या रोग से ग्रसित नहीं था जिससे उसकी मौत हुई बल्कि बैल से संभु साहू ने बैल से इतना कठिन परिश्रम कराया और उसके चारा पानी का भी ध्यान नहीं रखता मात्र बैल से कठिन काम लेने के कारण उनके प्राण निकल गये।
इसमें सारी लगती संभु साहू की है जिसके कारण बैल मर गया। पंच यही न्याय देता है की संभु साहू को बैल का उचित कीमत देनी होगी। जुम्मन सेख जब पंच के पद पर आशिन हुआ तो उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ की वास्तव में पंच के मुख से जो वाणी निकलती है वह स्वयं परमेश्वर के मुख से निकलती है। इसमें थोड़ा भी संदेह नहीं न्याय के बाद दोनों मित्र इस तरह से आपस में मिले की मानो कई साला से सूखे हुए पेड़ों में बसंत आ गया हो। पंचायत हर्षो उल्लास के साथ समाप्त हुआ।
'दो बैलों की कथा'
कहानी 'दो बैलों की कथा' कहानी हीरा-मोती नाम के बैलों की कहानी है। जो आपस में बेहद प्रेमपूर्ण तरीके से रहते हैं। सभी सुख-दुख साथ झेलते हैं। कहानी में झूरी है, जो दोनों का मालिक है। कहानी में झूरी की पत्नी है, जो हीरा-मोती से प्रेम करती है। कहानी में झूरी का साला गया भी है, जो क्रूर है। वो हीरा-मोती को अपने घर ले जाता है, पर हांड तोड़ मेहनत तो लेता है, खाने को कुछ नहीं देता। दोनों बैल वहाँ से भाग निकलते हैं। रास्ते में सांड से लड़ाई होती है, जिसमें दोनों बैल बाजी मार जाते हैं और तमाम मुश्किलों को झेलते हुए वापस झूरी तक पहुँचते हैं, जो दोनों को गले से लगा लेता है। इस कहानी में प्रेमचंद ने जानवरों की समझदारी और इंसानी प्रेम को दर्शाया गया है। इतना ही नहीं कहानी स्वतंत्रता संग्राम के गरम दल और नरम दल की स्थिति को भी दिखाती है। क्योंकि दोनों बैल इस बात का प्रतीक भी हैं।
प्रेम की होली
प्रेम की होली कहानी होली पर्व के साथ-साथ भारतीय
नारी के प्रेम और व्यवस्था को उजागर करती नज़र आती है। कहानी की मुख्य पात्र गंगी
जो 17 वर्ष की है, जिसका बाल विवाह हुआ है और तीन साल पहले विधवा भी हो गई है।
पिता के घर रहती है और कोई सहारा नहीं है। पिता मैकू महतो के पास रहकर
पशुओं, खेत-खलियान और घर का काम करती है। भाई की शादी हो चुकी है। होली के दिन
गरीब सिंह जो बुद्धु सिंह ठाकुर का लड़का है, उसकी भेंट गंगी से होती है। यहीं से
दोनों के बीच आँखों-आँखों में प्यार शुरू होता है। लेकिन कहता कोई किसी से नहीं
है।
गरीब सिंह एक दिन मैकू
महतो से मिला। महतो ने ठाकुर का हाल चाल जाना तथा बीमार दिखाई देने पर बीमारी के
बारे में पूछ ही लिया। ठाकुर ने मैकू महतो को अपनी बीमारी के बारे में विस्तार से
बताया। दिन बीतते गए और फिर होली आयी। ढोल, भंग और गान हुआ। लेकिन इस बार ठाकुर
गरीब सिंह नहीं आया। जब गंगी शाम को छत पर चढ़कर देखा तो दूर चिता जल रही थी, गंगी
इसे होलिका दहन समझ रही थी। लेकिन जब पता चलता है कि वह होलिका दहन नहीं, बल्कि
गरीब सिंह की चिता जल रही थी, गंगी वहीं ठहर सी जाती है। कहानी का अंत दुखद दिखाकर
कहानीकार ने समाज की कई बातों को आत्मसात करके कहने का मन बनाया है। कहानी के
बिंदुओं की ओर ध्यान दें तो कई सारी बातें एक साथ उभरकर आती हैं।
1.
बाल
विवाह
2.
जातिगत
भेदभाव
3.
ग्रामीण
जीवन की त्रासदी
4.
ऊँच नीच
का भेदभाव
5.
विधवा
पुनर्विवाह
6.
असफल
प्रेम कहानी
बेटों बाली विधवा
सन् 1932 में प्रकाश में आयी यह कहानी प्रेमचंद
के अंतिम दौर की कहानियों में है। यहाँ तक प्रेमचंद की कलम लोगों के दिलो-दिमाग
में अपना अलग ही स्थान बना चुकी थी। फूलमती के पति पं. अयोध्यानाथ का निधन
हो चुका था, उसके चार बेटे और एक बेटी थी- कामतानाथ, उमानाथ, दीनानाथ, सीतानाथ और
बेटी कुमुद। जो शादी के लायक हो गई थी। कामतानाथ दफ्तर में पाँच रूपये पर नौकर था,
उमानाथ डॉक्टरी पास कर चुका था, दीनानाथ बी.ए. में फैल होकर पत्रिकाओं में लेख
लिखता था, सीतानाथ एम.ए. कर रहा था। पूरी कहानी में चारों भाई पिता की संपत्ति
हथियाने और माँ के पास रखे जेवर लेने पर लगे हुए थे। सभी को अपना-अपना हिस्सा
चाहिए था। लेकिन कुमुद की शादी के बारे में कोई भी नहीं सोच रहा था।
कुमुद की शादी 40 वर्ष के
एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति दीनदयाल के साथ कर दी गई। शादी के बाद माँ कुमुद को खाली
हाथ घर से न जाए इसीलिए कुछ पैसे देती है। लेकिन बेटी का हृदय बहुत विशाल है वह
माँ को ही उस पैसे को वापस दे देती है।
कहानी का अंत बड़ा ही दुखद
है। माँ और बेटी को दुख देने के कारण कामतानाथ टाईफाईड से मर गया। दीनानाथ को छह
महीने की सजा हुई। उमानाथ रिश्वत लेते पकड़ा गया और उसकी सनद छीन गई।
आलोचना
इस कहानी में प्रेमचंद ने पहले ही पहरे में चारों
भाइयों की शादी दिखाई है, जिसका संवाद इस प्रकार है- चारों बहुएँ एक-से-एक
बढ़कर आज्ञाकारिणी। जबकि कहानी के मध्य में सीतानाथ के विवाह की बात होती है,
जो इस प्रकार है- सीतानाथ सबसे छोटा था। सिर झुकाये भाइयों की स्वार्थ भरी
बातें सुन-सुनकर कुछ कहने के लिए उतावला हो रहा था। अपना नाम सुनते ही बोला- मेरे
विवाह की आप लोग चिन्ता न करें।
कहानी के बिंदुओं पर बात करें तो-
1.
वृद्ध
समासाय
2.
पारिवारिक
कलह (संघर्ष)
3.
अनमेल
विवाह
4.
ग्रामीण
जीवन
5.
रीति-रिवाज
6.
नैतिक
मूल्यों को दृष्टिगत करना
घासवाली
घासवाली एक रोचक प्रेम कहानी है। प्रेम के अलग ही
स्वरूप को दिखलाती यह कहानी पतिव्रता धर्म को निभाती भी दिखाई देती है। कहानी में मुलिया
को दलित जाति का दिखाया गया है। मुलिया के सुंदर शरीर के साथ-साथ अच्छे व्यवहार को
भी दिखाया गया है। मुलिया का पति महावीर नेक और सच्चा व्यक्ति, जो ताँगा चलाने का
काम करता है। कहानी में लेखक ने दिखाने का प्रयास किया है कि निम्न जाति में
सुंदरता और वहाँ भी गरीबी तो वह कैसे लोगों के लिए अभिशाप बन जाता है। लेकिन सुंदर
मन हो तो सभी कुछ बदल जाता है। मुलिया का अपना कोई खेत नहीं है वह इधर-उधर से घास
खोदती है और उसे बाज़ार में बेचने जाती है तो लोग उस पर बुरी नज़र रखते हैं। बुरी
नज़र रखने वालों में ठाकुर चैनसिंह भी है, जो एक दिन मुलिया का हाथ पकड़ लेता है।
मुलिया के व्यंग्य बाणों और समझदार संवाद को सुनकर ठाकुर का हृदय परिवर्तन हो जाता
है।
एक दिन मुलिया बाज़ार में
घास बेचने गई थी और लोग उसके बारे में कुछ अच्छा तो कुछ बुरा कह रहे थे। यह बात
चैनसिंह ने सुनी। घर जाकर चैनसिंह ने मुलिया के पति महावीर को बुलाता है और मुलिया
को कभी बाज़ार घास न बैचने के लिए कहता है साथ ही साथ महावीर को अपने खेतों में
काम करने के लिए भी कहता है। इतना ही नहीं रोजाना एक रूपया फ्री में घर से ले जाने
के लिए कहता है, जो की घोड़े का कर्ज उतारने के लिए है। लेकिन यह बात मुलिया को
पता न चले इसके लिए वह महावीर को कह देता है।
एक दिन मुलिया चैनसिंह के
पीछे-पीछे दौड़े आती है, यह वही जगह होती है जब पहली बार चैनसिंह ने मुलिया का हाथ
पकड़ा था। मुलिया चैनसिंह को महावीर को कही सारी बात बता देती है। ठाकुर कहता है
कि मैंने तो महावीर को यह सभी कुछ बताने के लिए नहीं कहा था, अब तुम्हें पता ही चल
गया तो क्या। मुलिया सारी बात बताकर चली जाती है। चैनसिंह उसे दूर से निहारता रहता
है।
कहानी के महत्वपूर्ण तथ्य
1.
नारी
चित्रण
2.
व्यक्तित्व
का बदलता स्वरूप
3.
ग्रामीण
जीवन (ऋण या कर्ज समस्या)
4.
प्रेम
में विश्वास
5.
सामाजिक
चित्रण
जुलूस
जुलूस देश-भक्ति से प्रेरित कहानी है। इसमें लेखक
ने स्वतंत्रता से पूर्व की अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के आंदोलनों के दबाए जाने की
कहानी है। साथ ही साथ हृदय परिवर्तन की भी कहानी है, क्योंकि अंग्रेजी फौज या सेना
में भारतीय लोग ही रहते थे, सिर्फ अधिकारी अंग्रेज होते थे। ऐसे ही बीरबल
सिंह जो दरोगा के पद पर है और अपने घोड़े पर बैठकर जुलूस को रोकने जाते हैं। अपने
फर्ज और ईमान के आगे वह अपनी ड्यूटी करते हैं। लेकिन इब्राहिम के सिर पर दारोगा का
बेटन लगने से उसकी मौत हो गई। जन आक्रोश शांत हुआ कितने ही लोग घायल हुए। दारोगा
बीरबल सिंह का अंग्रेजों की नज़र में नाम हुआ। लेकिन अपने ही लोगों से हार गए।
पत्नी मिट्ठन बाई ने बीरबल सिंह के इस काम की आलोचना की और उन्हें ऐसा न करने की
बात कही।
इब्राहिम की मौत ने बीरबल
सिंह का हृदय परिवर्तन कर दिया। इब्राहिम के घर पर मिट्ठन शोक सभा में जाती हैं,
जहाँ उसे अपने पति को भी आते देखा। बीरबल सिंह का यह हृदय परिवर्तन दिखाता है कि
स्वतंत्रता सभी के हृदय में थी। पर फर्ज के हाथों कभी-कभी अपने ही लोगों पर हथियार
चलाना पड़ता था।
कहानी के बिंदु-
1.
स्वतंत्रता
आंदोलन की कहानी
2.
हृदय
परिवर्तन
3.
सच्ची
देश-भक्ति
4.
धर्म और
जाति का मेल
5.
फर्ज,
ईमान और आत्मीयता की कहानी
बलिदान
सन् 1918 में प्रकाश में आयी बलिदान कहानी कृषक
जीवन उसकी त्रासदी, ऋण, लगान, मजदूरी, गरीबी, जमींदारी आदि के आत्याचार की कहानी
है। कहानी में हरखू किसान के पास पाँच बीघा जमीन है और दो बैल। उसी में बोता खाता
था। परिवार नहीं था, अकेला रहता था, अचानक ज्वर आया और उसी में चल बसा। गिरधारी और
उसकी पत्नी सुभागी ने हरखू के क्रियाकर्म में और ब्राह्मणों के भोज में पैसा लगाया।
जिससे वह ज्यादा ही कर्ज में डूब गया। हरखू के मरते ही जमीन पर हक गिरधारी का होना
चाहिए था। लेकिन लाला ओंकारनाथ ने गिरधारी से हरखु की जमीन के लिए नजराना माँगा और
आठ रूपये बीधे के हिसाब से जोतने को कहा। गिरधारी पहले ही कर्ज में था। अब वह यह
पैसे कैसे देता।
लाला ओंकारनाथ ने पैसे
अधिक के लालच में जमीन कालिदीन, जो गाँव का मुखिया था उसे दे दी। एक दिन तुलसी
बनिया गिरधारी के घर उधार के पैसे माँगने आया अब न जमीन न काम ऐसे में बैल बेचने
के सिवाय कोई दूसरा रास्ता न था। गिरधारी ने बैल बेचकर कर्ज चुकता किया। लेकिन इस
सदमें को वह सह न सका और दुनिया से चल बसा।
गिरधारी का बड़ा बेटा ईंट
के भट्टे पर काम करने लगा। सुभागी दूसरे गाँव में रहने लगी, क्योंकि मजदूर का बेटा
और बहू हैं, जो उस समय बुरा माना जाता था। गिरधारी की आत्मा खेतों में मँडराती
रहती है, कोई खेत में जाने की हिम्मत नहीं करता। खेत खाली पड़े हैं।
कहानी के बिंदु-
1.
कर्ज और
ऋण की समस्या
2.
जमींदार
का अत्याचार
3.
रीति-रिवाजों
पर कुठाराघात
4.
कृषक
जीवन
5.
गरीबी
में घुटता-मरता इंसान
सुजान भगत
सन् 1927 में प्रकाश में
आयी कहानी सुनाज भगत पारिवारिक जिम्मेदारी, आत्मविश्वास, वृद्ध का सम्मान,
रीति-रिवाज, सामाजिक जीवन आदि कितने ही विषयों को लेकर हमारे समाने खड़ी होती है।
कहानी में सुजान महत्तो किसानी करता है और भगवत भजन में अपना जीवन बिताता
है। बेटों की शादी हो गई, अब खेत में कम भजन में समय अधिक लगाना चाहता है, सुजान
की पत्नी बुलाकी भी पति सेवा और द्वार पर आए किसी भक्त, साधु, संत को खाली हाथ न
जाने देती थी। घर की व्यवस्थाएँ बदली तो काम बेटों-बहुओं के हाथ में चला गया था,
जिससे हमेशा सुजान और बुलाकी को डर बना रहता था। एक दिन बड़े लड़के भोला ने माँ के
द्वारा भिखारी को दाल दान करते हुए देख लिया और भड़क गया। मेहनत को ऐसी ही मत
उड़ाओ वाक्य को सुनकर माँ जस की तस बनी रह गई।
सुजान भगत ने दोबारा कमर
कसी और सुबह जल्दी उठना शुरू किया, बैलों को लेकर खेत में जाना शुरू किया। दिन-रात
मेहनत कर खेतों को सुधार दिया और खेत सोना उगलने लगे। हर बार से अब की बार दस मन
अनाज ज्यादा हुआ। अनाज घर पर ही पहुँचा था तभी द्वार पर भिक्षुक आया और सुजान भगत ने दिल
खोलकर उसे जितना तुम उठा सकते हो उतना ले जाओ कहकर दान दिया। अब उसे कोई
रोकने वाला नहीं था। सुजान भगत दान करने में पीछे न था। बेटा बैठा-बैठा देख रहा
था। लेकिन कह कुछ नहीं सकता है, मेहनत रंग लाई थी, दान बढ़ाकर देता है, साधु-संतों
का आशीर्वाद था, दया धर्म का मूल है और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
कहानी के बिंदु-
1.
कृषक
जीवन
2.
पारिवारिक
संघर्ष
3.
मानव की
मेहनत
4.
वृद्ध
सम्मान
5.
दान-पुण्य
का महत्त्व
प्रेमचन्द की कहानियाँ
1. सांसारिक प्रेम और देश प्रेम-1908 नायक-मैजिनी और मैग्डलीन के पवित्र प्रेम की कहानी।
2. दुनिया का सबसे अनमोल रत्न- 1908 नायक-दिलफिगार, दिलफरेब की प्रेम कहानी।
3. शेख मखमूर- 1908 देश प्रेम की कहानी है इसमें नायक शेख मखमूर अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करता है। 4. शोक का पुरुस्कार- 1908 पति-पत्नी और प्रेमिका की कहानी है, इसमें कथावाचक और उसकी पत्नी कुमुदिनी तथा प्रेमिका लीला के जीवन का प्रेम है।
5. यह मेरी मातृभूमि- 1908 मातृभूमि के प्रति प्रेम दिखाया गया है।
6. पाप का अग्निकुंड- 1910 धर्मसिंह द्वारा गाय की हत्या करने और ब्रजविलासीनी द्वारा हत्या का बदला लेने पर आधारित है
7. शाप- 1910 बर्लिन (जर्मनी) के एक विश्व यात्री द्वारा भारत यात्रा के संस्मरण के रूप में लिखी गई है।
8. शिकार- 1910 नायक- कुँवर सिंह पत्नी वसुधा जो अपने पति के प्राणों की रक्षा शेर का शिकार करके करती है।
9. रानी सारंधा- 1910 मुगलों और राजपुतों के बीच लड़ाई की कहानी है।
10. बड़े घर की बेडी-1910 नायक- श्रीकंठ पत्नी-आनंदी, देवर लाल बिहारी। पारिवारिक कहानी है।
11. राजा हरदौल- 1911 नायक- जुझार सिंह-पत्नी कुलीना और भाई छत्रशाल। पत्नी पर छत्रशाल के साथ शंका होने पर छत्रशाल मौत को गले लगा लेता है।
12. आखरी मंजिल-1911 प्रेम कहानी है।
13. गरीब की हाय-1911 मुख्तार सिंह द्वारा गरीब औरत का सभी कुछ छीन लेना और औरत का पागल होना दिखाया गया है।
14. आल्हा 1912 आल्हा और ऊदल दो भाइयों के पराक्रम की कहानी है।
15. ममता- 1912 कहानी में रामरक्षा दास और गिरधारी लाल दो मित्रों की है।
16. नसीहतों का दफ्तर 1912 नायक- अक्षय, पत्नी हेमवती, पति द्वारा हर बात पर नसीहत देने की कहानी है। 17. अमावस्या की रात्री-1913 पं. देवदत की पत्नी गिरजा बीमार होती है, अमावस्या की रात होती है पत्नी मर जाती है।
18. धर्म संकट-1913 नायक- रूपचंद और प्रेमिका कामिनी जिसकी शादी हो गई है। कामिनी के कहने पर एक दिन दोनों मिलते हैं।
19. शंख नाद- 1913 मानु चौधरी के तीन पुत्र बितान, शान और गुमान। गुमान की शादी हो जाती है और वह कुछ नहीं कमाता बेटे को पिटता है तो उसके अंदर शंखनाद होती है।
20. नमक का दरोगा- 1913 पं. अलोपीदीन(पैसे वाला) की नमक की गाड़ियाँ पकडी जाती है तो वंशीधर उसे किसी कीमत पर नहीं छोड़ता। वंशीधर की नौकरी चली गई।
21. खून सफेद-1914 किसान जादोराय का बेटा साधो पादरी हो जाता है।
22. शिकारी राजकुमार-1914
23. परीक्षा-1914 हिंदी में प्रकाशित होने वाली पहली कहानी। देवगढ़ के दीवान सुजानसिंह के द्वारा दीवान की खोज। पं. जानकीनाथ का दीवान बनना
24. पछतावा-1914 कहानी पं. दर्गानाथ की ईमानदारी को दिखाती है।
25. विस्मृति-1915 भाई-बहन के प्रेम की कहानी
26. बेटी का धन-1915 सुक्खु अपनी बेटी के गहने झगडू साहू के पास रखता है।
27. दो भाई-1916 केदार और माधव दो भाई हैं केदार की पत्नी चंपा दोनों को अलग कर देती है।
28. सज्जनता का दंड़-1916 सरदार शिव सिंह न तो लूटते है और न लूटने देते हैं।
29. पंच परमेश्वर-1916 अलगू और जुम्मन दो मित्रों की कहानी है।
30. धोखा-1916 गायक और हरिश्चन्द्र दोनों एक है, प्रभा प्रेमी एवं पति के द्वंद्व से निकलती है।