बुधवार, 26 जून 2019

भारतीयता की छाप हाइकु-संग्रह (नीलू गुप्ता)


भारतीयता की छाप हाइकु-संग्रह (नीलू गुप्ता)


डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला
भारतीयता की जड़ें वट वृक्ष के रूप में किस प्रकार फैली हुई हैं, यह बात प्रवास के समय मुझे समझ में आई। वास्तव में भारतीय संस्कृति की अनवरत बहती मंदाकिनी तन और मन को किस प्रकार पवित्र करती है यह बात हर मानव को समझनी चाहिए। अगर आज कोई प्रवासी साहित्यकार यह कहता है कि आज विश्व को भारत की जरूरत है, तो यह कोई सामान्य बात नहीं है। पिछले कई सालों से प्रवास में रहते, उनके कायदे कानूनों का आदर करते हुए, देश और संस्कृति को मन में संजोए हुए, कार्य करने वाली लेखिका नीलू गुप्ता जी का 'गगन उजियारा' हाइकु-संग्रह पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। लेखिका कैलिफोर्निया में विश्व हिंदी दूत के नाम से जानी-मानी जाती हैं। साहित्य की विधा में वह सकारात्मक सोच, विश्वबंधुत्व की बात मात्र न लिखकर-कहकर, अपितु जिंदादिली से जीवन जीने में विश्वास रखती हैं।
जापान के साहित्य की यह विधा बहुत पुरानी है। जापानी संत कवि बाशों द्वारा प्रतिष्ठित सम्मानित जीवन दर्शन की यह विधा जापान की सीमाओं को लाँघती-पार करती हुई, भारत में आई। रवीन्द्रनाथ टैगोर, अज्ञेय, सत्यभूषण वर्मा आदि कुछ साहित्यकारों ने इस विधा में हाथ आजमाया।
हाइकु की पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर और तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर अर्थात् कुल 17 अक्षरों का जोड़ हाइकु कहलाता है। हर पंक्ति संक्षिप्तता में पूर्ण है अन्य पंक्ति का आलंबन लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस विधा को गागर में सागर भरने की विधा कहते हैं। भारतीय छंद-योजना की परंपरा की तरह यह वार्णिक छंद योजना सी लगती है। यह वार्णिक अर्थात् अक्षरों का योग अतुकांत है, जबकि भारतीय काव्यशास्त्रीय छंद योजना प्राचीन और तुकांतवादी है। नीलू गुप्ता का गगन उजिराया हाइकु संग्रह 2018 में प्रकाशित हुआ। इसमें सहज सरल भाषा में 13 विषयों पर हाइकु लिखे गए हैं। इस संग्रह का नाम स्वतः अपनी सार्थकता का बोध कराने में समर्थ है। गगन तक प्रकाशमय, धरती से आकाश तक अनन्त सीमाओं को छूते हुए, मानवता को बचाए रखने की सीख यह संग्रह देता है, सात समुद्र पार आकर, हजारों मील दूर आकर, भौतिक सुखों को पाकर, मानवता, शांति, भाई-चारे को बनाए रखने का बोध यहाँ मिलता है। बिटिया नामक शीर्षक के हाइकु देखकर आप दंग रह जायेंगे। बिटिया केवल बिटिया है, कहीं की भी हो, वह आँखों का नूर और दिल का टुकड़ा होती है। इस सच्चाई और सत्य की अनुभूति का किस प्रकार संक्षिप्तता पूर्ण, सार्थक बना दिया है, जो इस प्रकार हैः-
बिटिया तो हैं,
महता गुलाब
महके घर.....(पृष्ठ-11)
ˣ   ˣ   ˣ
घर की लक्ष्मी
मेरी बिटिया रानी
खूब सयानी... (पृष्ठ-12)
ˣ   ˣ   ˣ
कीर्ति पताका
जग में फहराये
आसमाँ छुए..... (पृष्ठ-12)
ˣ   ˣ   ˣ
आँखों का नूर
है दिल का सुकून
प्यारी बिटिया.... (पृष्ठ-15)
ˣ   ˣ   ˣ
साँसों में बसी
दिल की धड़कन
मेरी बिटिया... (पृष्ठ-19)
ˣ   ˣ   ˣ

इस प्रकार बिटिया किस प्रकार से जन्म से लेकर मरण तक विभिन्न रूपों में बँटी, अपने पापा को ही केवल समझने वाली सच्चाई से परिचित होती है। वह अपने एवं सास-ससुर के संबंधों को जोड़ने का कार्य करती है। हर संबंधों को निभाते हुए, जमीं से आसमान को छूना चाहती है। पुरखों के आशीर्वाद से, सत्कर्मों के पुण्य से, बलवान भाग्य से बेटियाँ मिलती हैं। इन्हें समझना, इनकी कद्र करना, इन्हें आगे बढ़ाकर ही आकाश में प्रकाश होगा। ऐसे भावों को प्रकाशित करना और वो भी मात्र 17 अक्षरों में बहुत बड़ी बात है। 51 हाइकु में बिटिया के विभिन्न छवियों को चित्रित किया गया है। दूसरा शीर्षक माँ है। माँ की महिमा, माँ का स्वरूप अद्वितीय है। माँ के चरणों में जन्नत, माँ का आँचल सब संतापों की दवा है। इन भावों की अभिव्यक्ति कितनी सहज ढंग से है, देखने योग्य है।
कृपा सागर
तुम बिन है सूना
मेरा सागर..... (पृष्ठ-22)
 ˣ   ˣ   ˣ
तेरी महिमा
मण्डित है जगत
माँ तू है महान... (पृष्ठ-22)
ˣ   ˣ   ˣ
माँ अनमोल
माँ जग में है नहीं
तोलन हार... (पृष्ठ-23)
ˣ   ˣ   ˣ
माँ तेरी छाँव
बरगद सी फैली
सदा सुखद... (पृष्ठ-23)
ˣ   ˣ   ˣ
चंदा चाँदनी
अमृत बरसाये
माँ की मूरत... (पृष्ठ-24)
ˣ   ˣ   ˣ

इस प्रकार कोई भी सुख माँ से बड़ा नहीं है, संपदा-विपदा आने पर सदा माँ ही याद आती है। उम्र के हर पड़ाव पर, हर विपदा में माँ ही सबसे पहले निकलता है। माँ का शरीर रहे ना रहे, हर समय उसकी याद में आँखों से आँसू जरूर बह जाते हैँ। उसके बिना तीज त्योहार फीके लगते हैं। माँ तेरा ऋण चुकाना किसी के बस की बात नहीं। मनुष्य तो क्या भगवान भी नहीं चुका सकते, तू खुद ही उसका अवतार है।
पूजा आरती
सब तेरे अर्पण
तू ही वन्दन... (पृष्ठ-31)
ˣ   ˣ   ˣ
जन्म दायिनी
कर्तव्यपरायणा
शक्तिवाहिनी... (पृष्ठ-36)
ˣ   ˣ   ˣ

माँ का विकल्प कोई दूसरा है ही नहीं। 142 हाइकु में माँ की महिमा का अद्भुत वर्णन देखने को मिलता है।
दिवाली विषय पर लिखे गए हाइकु दीपावली के प्रकाशमय वातावरण के साथ तन और मन को प्रकाशित करने की प्रेरणा देते हैं-
दीप आलोक
आलोकित करता
तन और मन
ˣ   ˣ   ˣ  
तमस मिटे
राग द्वेष कलुष
सभी हो दूर... (पृष्ठ-52)
ˣ   ˣ   ˣ
लक्ष्मी, गणेश, ऋद्धि, सिद्धि की पूजा के साथ-साथ दीपक की महत्ता का वर्णन अद्भुत हैः-
दीये ने दिया
बहुत कुछ दिया
दिया ही दिया
ˣ   ˣ   ˣ
मनसा वाचा
कर्मणा संग करे
पवित्र कर्म... (पृष्ठ-54)
ˣ   ˣ   ˣ
परहिताय
दीपक सच्चा योगी
निष्काम जले... (पृष्ठ-63)
ˣ   ˣ   ˣ
दीप जलाना
अंधकार भगाना
कहाँ मना है
ˣ   ˣ   ˣ
वसुधा सारी
रोशनी में नहाई
झिलमिलाई... (पृष्ठ-50)
ˣ   ˣ   ˣ

करवा चौथ विषय पर भी बहुत सुंदर ढंग से भारतीय परिवार में इस पर्व को मनाने की पद्धिति का वर्णन किया है। भारतीय नारी के जीवन में, इस पर्व की महत्ता और पवित्रता को दर्शाया गया है। पत्नी का पूरे दिन उपवास, साज-सिंगार के साथ पाकशाला में स्वादिष्ट व्यंजनों की तैयारी में लीन पत्नियाँ बड़े हर्ष-चाव से मनाती हैं। पति भी अपनी मनमोहनी को देख मंद-मंद मुस्कराते हैं-
प्रीत की रीत
दुल्हनीया है सजी
माँग सिंदूर
ˣ   ˣ   ˣ
करवा पूजें
सहेलियन संग
सुहाग माँगे
ˣ   ˣ   ˣ
प्रीति बंधन
आँखिया मुस्कराये
मन लहराये... (पृष्ठ-84)

माँग सुहाग
सिंदूर की लाज
पति का लाड़... (पृष्ठ-84)

चौथ माता से
पिया की लम्बी उम्र
खुशियाँ माँगू... (पृष्ठ-87)

नूतन वर्ष पर सबको राष्ट्र भावना से उद्बोधित करने का प्रयास किया गया है-
राष्ट्रीय प्रेम,
मन मं सर्वोपरि
विद्यमान हो
ˣ   ˣ   ˣ
उत्साहित हो
साहसी बनें सब
उन्नति करें
ˣ   ˣ   ˣ
घर-घर में
गीता परायण हो
शुद्ध विचार... (पृष्ठ-95)
ˣ   ˣ   ˣ

सीमा प्रहरी जवानों की महिमा का सुन्दर वर्णन किया गया है, उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता-
स्वर्ग से बड़ी
जननी जन्मभूमि
जानी तुमने... (पृष्ठ-105)
ˣ   ˣ   ˣ
धन्य धरती
धन्य माँओं की कोख
धन्य धन्य है... (पृष्ठ-106)
ˣ   ˣ   ˣ
दीपक की महत्ता अद्भुत दर्शायी गई हैः-
अकेला दीप
अंधियारे से लड़ा
फड़फड़ाया
ˣ   ˣ   ˣ
बुझने से पूर्व
हँसा खिलखिलाया
शान्त हो गया
ˣ   ˣ   ˣ
संदेश दिया
डरना ना किसी से
जान दे देना... (पृष्ठ-107)
ˣ   ˣ   ˣ
मानव हित
तिल तिल जलना
दीप की सीख
ˣ   ˣ   ˣ
उजियारा दे
झिलमिलाता दीप
धरा सजाये... (पृष्ठ-109)
ˣ   ˣ   ˣ
डालर की चका चौंध, अमेरिका की सुख-सुविधाएँ और भारतीय संस्कृति का मोह, जननी, जन्मभूमि से अलगाव के दर्द को दर्शाते हाइकु दिल को छूने वाले हैं-
डालर एक
रूपये हैं पचास
वाह रे वाह
ˣ   ˣ   ˣ
खनखनाता
कुबेर का खजाना
अपने हाथ... (पृष्ठ-111)
ˣ   ˣ   ˣ

संगी न साथी
दूर देश अपना
मन भ्रमित
ˣ   ˣ   ˣ
दोनों संस्कृति
इक दूजे से भिन्न
समझें कैसे... (पृष्ठ-112)
ˣ   ˣ   ˣ

जड़ें गहरी
भूलें नहीं संस्कृति
जग महके... (पृष्ठ-118)
ˣ   ˣ   ˣ

इस प्रकार कवयित्री नीलू गुप्ता के काव्य-संसार में भारतीय संस्कृति कूट-कूट कर दिखलाई पड़ती है। एक तरफ जननी जन्मभूमि का आकर्षण है, तो दूसरी तरफ विश्वबंधुत्व की भावना है। यद्यपि दोनों का महत्व उनकी दृष्टि में एक समान है। वे भारतीय मेधा और राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका हैं, तो कर्म स्थली कैलिफोर्निया में उदार चरितानाम् वसुधैव कुटुम्बकम् की ज्योति जलाकर, भारतीय ऋषि-मुनियों की ज्योति को प्रज्वलित किए हुए हैं। किसी भी विषय को वह सहजता से मानवता की ओर जोड़ लेती हैं, यह उनके असाधारण व्यक्तित्व की देन है, जिसके कारण हाइकु जैसी विधा को भी सुंदर, सार्थक तरीके से सारगर्भित कर दिया है। उनका प्रयास सराहनीय  एवं प्रशंसनीय तो है ही, साहित्य में एक अमूल्य निधि भी रहेगा। कहीं भी विधान टूटने नहीं पाया है, ना ही अधूरी अभिव्यक्ति रही है।

डॉ. सुधांशु कुमार शुक्ला
आई.सी.सी.आर.
चेयर हिंदी,
वार्सा यूनिवर्सिटी,
वार्सा पोलैंड
+48579125129

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