वर्तनी शिक्षण
• पारंपरिक रूप से हम जिस प्रक्रिया या व्यवस्था द्वारा भाषा के ध्वन्यात्मक रूप को लिखित रूप देते हैं उसे ̒वर्तनी कहा जाता है।
• मानक उच्चारण में ध्वनियों का जो अनुक्रम होता है, उसी के अनुसार लिखित रूप में वर्णों और अक्षरों का क्रम नियोजन शुद्ध वर्तनी का मुख्य उद्देश्य होता है।
• हिंदी वर्तनी का स्वरूप अक्षरात्मक है। उसमें स्वरों वर्णों के लिपि संकेत तो होते ही है, उनकी मात्राएँ भी प्रयुक्त होती है।
• हिंदी वर्तनी की अशुद्धियों के अनेक कारण है- उच्चारण-भिन्नता से वर्तनीगत व्याघात (Interruption), चिह्नों में एकरूपता का अभाव, लिपि का अपूर्ण ज्ञान, मात्राओं के प्रयोग में असावधानी, शब्द-रचना और अर्थ-भेद की अनभिज्ञता तथा सादृश्य आदि।
• भाषा शिक्षण के अन्तर्गत वर्तनी संबंधी त्रुटियों का निवारण वर्तनी का शुद्ध उच्चारण एवं लेखन अभ्यास करवाकर करना चाहिए।
• वर्तनी ठीक कराने हेतु कक्षा में प्रिंट समृद्ध माहौल का निर्माण करना चाहिए।
• वर्ण – व्–र–ण = व् -पूर्ण, र -प्रवाह, ण -ध्वनि =अर्थात वर्ण वह तत्व है जिसमें पूर्णता है, ध्वनि है और ध्वनि का प्रवाह है।
• नाभी से लेकर कंठ तक वाणी के मूल केंद्र है। नाभी से ही बालक को गर्भ में पोषण मिलता है।
• आप ‘अ ‘ बोलिए – अब अनुभव करिए कि आपकी नाभी अवश्य हिलती है। यही ‘अकार’ का उद्भव केंद्र है। बिना ‘अकार’ के वर्ण आकार नहीं ले सकते।
• आपके बोलने की चाह करते ही नाभी केंद्र उतेजित होता है और यहीं प्राण वायु के सहारे से क्रमशः कंठ और होठों तक ऊपर जाते हुए स्वरों का स्वरुप ही भाषा और वार्तालाप बनता है।
• अ से अः तक बोलिए तो नाभी से उतेजित वाणी तंत्र क्रमशः कंठ तक जाता है। जो सबसे पहले नाभी पर दबाब पड़ता है। वह ‘कपाल भाती’ का ही रूप है ।
• अं भ्रामरी का रूप है। अः श्वास को बाहर निकलने का रूप है।
• जब चन्द्र बिंदु का उच्चारण होता है तो इसकी झंकार की तरंगें मस्तिष्क के स्नायु तंत्र तक जाती हैं।
• विसर्ग का उच्चारण नाभी क्षेत्र से ही है बिना नाभी का क्षेत्र हिले स्वः नहीं बोला जा सकता है।
• अकार और हकार का संतुलन और संयोजन – अकार में कोमल और हकार में कठोर का निरूपण है। एक बार कोमल और एक बार कठोर है। प्रत्येक वर्ग में पहला वर्ण वाद, दूसरा प्रतिवाद, तीसरा संवाद और चौथा अगति वाद है।
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