हिंदी
कहानी की विकास यात्रा
कहानी व्यक्ति की कल्पना, उत्सुकता एवं जिज्ञासा
के विस्तार के लिए होती है। कहानी हमारे मस्तिष्क में शब्द भंडार, कल्पनाशीलता और
सृजनात्मकता का विकास करती है। विचार करें तो कहानियाँ पढ़ने से हमें अन्य लोगों
के अनुभवों में प्रवेश करने का मौका मिलता है। इससे हमें कौन, कहाँ और कैसे लिखता
है? आदि कितने ही प्रश्नों को जानने
का मौका मिलता है। हीलिंग द माइंड थ्रू द पावन ऑफ स्टोरी में डॉ. लुइस मेहल
मेडरोना कहती हैं- 'कहानियों के जरिए दिमाग बाहरी दुनिया का नक्शा तैयार करता है।
बार-बार एक ही तरह की कहानी से दिमाग उसी नक्शे के अनुसार प्रतिक्रिया देने लगता
है।' कहानी शब्दजाल नहीं, बल्कि कहानीकार का जीवन-दर्शन कराता है। कहानी विधा में
समय के साथ परिवर्तन हुआ है और होता रहेगा, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
कहानियों के विषय समाज, देशभक्ति, लोकसेवा, प्रेम, जासूसी आदि कितने ही रहे हैं।
हर एक कहानीकार इन विषयों को अपने हिसाब से दिखाता और समझाता है। आचार्य रामचंद्र
शुक्ल के अनुसार, 'इसमें कोई संदेह नहीं कि उपन्यास और छोटी कहानी दोनों के ढाँचे
हमने पश्चिम से लिये हैं। हैं भी ये ढाँचे बड़े सुंदर। हम समझते हैं कि ढाँचों तक
ही रहना चाहिए। पश्चिम में भिन्न-भिन्न दृष्टियों से किये हुए उनके वर्गीकरण, उनके
संबंध में निरूपित तरह-तरह के सिद्धांत कहानियों का हमारे वर्तमान हिंदी साहित्य
में इतनी अनेकरूपता के साथ विकास हुआ है कि उनके संबंध में हम अपने कुछ स्वतंत्र
सिद्धांत स्थिर कर सकते हैं, अपने ढंग पर उनके भेद-उपभेद निरूपित कर सकते हैं।'
विचार करें तो हिंदी कहानी का यह दौर यूरोप से विकसित होकर अंग्रेजी और बंगला के
माध्यम से बीसवीं शताब्दी में भारत आया। डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार, 'कहानी का हिंदी साहित्य में आविर्भाव बीसवीं
शती के आरंभ में होता है, साहित्यिक पत्रकारिता के उद्य के साथ।'[1] समझ
या ज्ञान की दृष्टि से समझे तो हमारी प्राचीन कहानी एवं आधुनिक कहानी के स्वरूप
में बड़ा अंतर दिखलाई पड़ता है। प्राचीन कहानी अलग-अलग लोक कथाओं पर आधारित है, जो
हमारे वैदिक और लौकिक ग्रंथों या साहित्य से आधारित है। रामस्वरूप चतुर्वेदी के
अनुसार, 'कहानी हर रूप में उपन्यास से पुरानी विधा है।
गीत और कहानी मानव सभ्यता से साक्षरता-काल के पहले से जुड़े हुए हैं, यद्यपि दोनों
के लक्ष्य कुछ भिन्न रहे हैं।'[2] जहाँ तक आधुनिक कहानी की बात है आधुनिक कहानी
वह सामान्य जन के जीवन से संबंधित लौकिक यथार्थवादी, विचारात्मक धरती के सुख तक सीमित है।
हिंदी की प्रथम कहानी किसे माना जाए इस विषय को
लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। लगभग दर्जन भर कहानियाँ प्रथम कहानी की होड़ में खड़ी
होती दिखलाई पड़ती हैं। वर्ष 1803 में प्रकाश में आने वाली प्रथम कहानी ‘रानी
केतकी की कहानी’ को कहा जाता है
इसे उदयभान चरित भी कहा जाता है। इस कहानी के लेखक इंशा अल्ला खां हैं। डॉ. गुलाब
राय के मतानुसार, 'रानी केतकी की कहानी इस उद्देश्य से लिखी गई थी
कि उसमें हिन्दवी छुट और किसी बोली का पुट न मिले।'[3] लेकिन जो भी हो कुछ साहित्यकार इसे ही पहली कहानी का श्रेय देते हैं।
‘रानी
केतनी की कहानी’ के पश्चात् राजा शिव प्रसाद सितारे हिंद द्वारा
रचित ‘राजा भोज का सपना’, भारतेंहु
हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘अद्भुत अपूर्व स्वप्न’ का उल्लेख
किया जा सकता है जिसमें कहानी की सी रोचकता विद्यमान है। इतना ही नहीं विद्वानों
के अलग-अलग विचारों के कारण कुछ विद्वान किशोरीलाल गोस्वामी द्वारा रचित ‘इन्दुमती’ को
प्रथम कहानी मानने पर बल देते है। डॉ. श्रीनिवास
शर्मा के अनुसार, 'बहुत से विद्वान किशोरीलाल गोस्वामी को हिंदी का पहला कहानीकार मानते
हैं और उनकी इन्दुमती को पहली कहानी। यह सन् 1887 में लिखी गई थी और 1900 में
प्रकाशित हुई थी।'[4] आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक ढंग की
कहानियों का आरंभ ‘सरस्वती पत्रिका’ के प्रकाशन काल से स्वीकारा है। ‘सरस्वती’ में
प्रकाशित कहानियाँ इस प्रकार हैं-
1.
इंदुमती - किशोरी लाल
गोस्वामी (1900 ई.)
2.
गुलबहार - किशोरी लाल गोस्वामी (1902
ई.)
3.
प्लेग की चुडैल - मास्टर भगवान दास (1902 ई.)
4.
ग्यारह वर्ष का समय - राम चन्द्र शुक्ल (1903 ई.)
5.
पंडित और पंडितानी - गिरजादत्त बाजपेयी (1903 ई.)
इस दृष्टि से प्रथम कहानीकार किशोरी
लाल गोस्वामी तथा प्रथम कहानी ‘इंदुमती’ प्रमाणित होती है। ‘इंदुमती’ की चर्चा प्रायः प्रत्येक समीक्षक ने की है। रामचन्द्र शुक्ल ‘इंदुमती’ को ही प्रथम कहानी मानते हैं। रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, 'यदि ‘इंदुमती’ किसी बंगला कहानी की छाया नहीं है तो
हिंदी की यही पहली मौलिक कहानी ठहरती है इसके उपरांत ‘ग्यारह वर्ष का समय’ और ‘दुलाईवाली’ का नंबर आता है।'[6]
[1] . हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास,
रामस्वरूप चतुर्वेदी, पेज- 144.
[2] हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास, रामस्वरूप
चतुर्वेदी, पेज- 144.
[3] हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास, डॉ.
गुलाब राय, पेज-182
[4] हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल, डॉ.
श्रीनिवास शर्मा, पेज-34
[5] हिंदी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र
शुकल, पेज-359-360 (प्रकाशक- प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली)
[6] हिंदी साहित्य का इतिहास, रामचंद्र शुक्ल, पेज-
360.
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