सक्रिय कहानी
बदलते दौर के साथ हिंदी में एक कहानी
विधा में एक नया नाम और जुड़ा वह है सक्रिय कहानी। सक्रिय कहानी का सीधा और स्पष्ट
मतलब है व्यक्ति की चेतनात्मक ऊर्जा और जीवंतता की कहानी। सक्रिय कहानी के जीवन और
विकास के बारे में डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय जी लिखते हैं कि, '1980 के बाद एक और नया नारा सुनाई दिया
और वह है सक्रिय कहानी का नारा। राकेश वत्स ने मंच-78 अंक में यह नाम प्रचलित
किया।'[1] सक्रिय कहानी व्यक्ति की बेबसी, वैचारिक निहत्थेपन और नपुंसकता से
निजात दिलाकर पहले स्वयं अपने अंदर की कमजोरियों के खिलाफ खड़ा होने के लिए तैयार
करने की जिम्मेदारी अपने सिर लेती है। विचार करें तो कुछ हद तक सक्रिय कहानी जनवादी
कहानी के अति निकट ठहरती है। सक्रिय कहानी से जुड़े कहानीकारों में सुरेंद्र कुमार, विवेक निझावन, रमेश बतरा, धूमकेतु आदि मुख्य हैं।
सक्रिय आंदोलन से जुड़े कहानीकार आर्थिक-सामाजिक
शोषण का विरोध करते हैं। इसके लिए वे वर्तमान व्यवस्था को उत्तरदायी बतलाते हैं।
डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय जी के मतानुसार, 'राकेश वत्स ने इस कहानी का संबंध आदमी
की चेतनात्मक ऊर्जा और जीवन्तता से बताया है। वह आदमी की बेबसी, वैचारिक निहत्थेपन
और नपुंसकता से निजात दिलाती है।'[2] इस दृष्टि से इन कहानीकारों ने सक्रिय
आदमी को उभारने का प्रयत्न किया है।
[1] स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य का इतिहास, डॉ.
लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय, पेज-100
[2] स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य का इतिहास, डॉ.
लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय, पेज-100
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