केलॉग
सैमुएल केलॉग का जन्म 06 सितंबर, 1839 में, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका
के न्यूयार्क के लाँग आइलैण्ड में क्योकू नामक स्थान में एक गिरजा-भवन
(परोहिताश्रम) में हुआ। उनके पिता का नाम पादरी सैमुएल तथा माता का नाम मेरी पी
हेनरी था। बचपन में शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण उन्हें विद्यालय नहीं भेजा
गया और शिक्षा दिक्षा घर पर ही हुई, माँ ही उनकी प्रथम गुरू रही वही उन्हें सिखाती
थी। बाद में लॉग आइलैण्ड के विलियम्स कॉलेज से उन्होंने मैट्रिक पास किया और कॉलेज
में भरती हो गया।
कॉलेज में भी स्वास्थ्य बिगड जाने कारण
कॉलेज फिर से छोड़ना पड़ा लेकिन वह घर पर अध्ययन करते रहे। दो वर्ष बाद स्वास्थ्य
लाभ हो जाने पर उन्होंने प्रिंसटन नामक कॉलेज में प्रवेश लिया और तीन वर्ष के कठिन
अध्ययन के बाद उसी कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा उच्च श्रेणी में पास की साथ ही कक्षा
में प्रथम भी रहे। इसके बाद वे प्रिंसटन सेमिनरी में भर्ती हो गये और वही उन्होंने
पादरी की दीक्षा प्राप्त की। सन् 1864 के अमेरिकन प्रेसबिटेरियन मिशन के पादरी
अभिषिक्त हुए। उसी वर्ष के मई महीने में मेरी अन्टोनिएट नामक महिला से उनका
विवाह सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद केलॉग और उनकी पत्नी दोनों ही भारत आ
गये। 1864 के दिसंबर महीने में बोस्टन से एक माल-जहाज पर दोनों ने यात्रा आरंभ की।
उनकी गणना के अनुसार करीब तीन महीने में उनका जहाज भारत पहुँचा था। केलॉग ईसाई
धर्म के प्रचार के लिए भारत में आए थे। उनका बहुत सा समय प्रयाग में बीता था।
केलॉग की पुस्तक का नाम था ए ग्रामर आफ द हिन्दी लैंग्वेज, इसका
पहला संस्करण 1874 में प्रकाशित हुआ था। केलॉग ने अपने प्रथम संस्करण के समय
लल्लूलाल के प्रेमसागर के उदाहरण लिए, लेकिन दूसरे संस्करण में राजा लक्ष्मण सिंह
द्वारा प्रस्तुत अभिज्ञान शाकुंतलम् की सहायता ली। केलॉग जिस समय हिन्दी व्याकरण
लिख रहे थे, यूरोप के कुछ विद्वान भारत में बोली जानेवाली आर्य-परिवार की भाषाओं
का अध्ययन कर चुके थे। केलॉग ने अपने समकालीन तथा पूर्ववर्ती विद्वानों को पढ़ा,
जो इस प्रकार हैं-बीम्स, हार्नली, पिनकाट, प्लेट्स और ग्रियर्सन आदि। इतना ही नहीं
अपनी पुस्तक हिंदी व्याकरण में इनकी चर्चा भी हुई है। केलॉग के अनुसार- 'परिनिष्ठित हिंदी का टकसालीपन प्रवाह और सामर्थ्य
का मूल स्रोत बोलियाँ ही है। बोलियों से संबंध-विच्छेद करके स्तरीय हिंदी जीवन
शक्ति से वंचित हो जाएगी।' (हिन्दी व्याकरण, केलॉग, अनुवाद- डॉ. श्रीराम
शर्मा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, पृष्ठ- 10-11)
केलॉग ने अपने व्याकरण में जो जानकारी दी है, उसके आधार पर कहा जा
सकता है कि ये बोलियाँ सभी बातों में बहुत साम्य रखती हैं। केलॉग के अनुसार यह भी
सत्य है कि हिन्दुओं के घरों में कहीं भी उर्दू का प्रयोग नहीं होता। इतना ही नहीं
केलॉग ने तुलसीदास के रामचरित मानस में प्रयुक्त भाषा पर लेखक ने विशेष ध्यान
दिया। कबीर और सूर की रचनाओं से भी उन्होंने लाभ उठाया। (हिन्दी व्याकरण, केलॉग, अनुवाद- डॉ. श्रीराम
शर्मा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, पृष्ठ- 10-11)
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