बृहत् प्रामाणिक हिंदी कोश
की समीक्षा
रिपोर्टः-
1. शीर्षकः- बृहत् प्रामाणिक
हिन्दी कोश।
2. प्रकाशनः-
लोकभारती प्रकाशन, दरबारी बिल्डिंग, एम. जी. रोड़, इलाहाबाद।
3. मूल संपादकः- आचार्य रामचन्द्र वर्मा।
संशोधन-परिवर्धनः- डॉ. बदरीनाथ कपूर।
4. पृष्ठ संख्याः- 1088.
5. शब्द संख्याः- लगभग 49000.
शब्दों का संकलनः-
1. कोश की भूमिका में माना गया
है कि नित्य प्रयोग में आने वाले शब्दों को स्थान दिया गया है।
2. आंचलिक तथा प्रादेशिक
रचनाकारों के कुछ शब्दों को स्थान दिया गया है। यह वे शब्द हैं जो साहित्य में
अपना स्थान बना पाए हैं।
3. विज्ञान, प्रौद्योगिकी, वाणिज्य, प्रशासन, जनसंचार आदि क्षेत्रों से
जुड़े अंग्रेजी शब्दों को भी कोश में रखा गया है। उदा. इलेक्टान, मीडिया आदि।
4. अरबी-फारसी के शब्दों को भी
कोश में रखा गया है। उदा. गलतबयानी, जज्बा आदि।
5. समस्त पदों में पूर्वपद या
उत्तरपद के रूप में विशिष्ट शब्दों के योग से बने नए शब्दों को रखा गया है। उदा. जन
पूर्वपदः- जनगणना, जनजाति। -करण
उत्तरपदः- एकीकरण, स्पष्टीकरण, साधारणीकरण आदि।
6. शब्द के अर्थ के साथ में
अंग्रेजी शब्द का लिपियांतरण करके लिखा गया है। इस पर विचार करना है।
7. कोश में कुछ शब्दों के नए
अर्थ भी बताए गए हैं। उदा. केंद्र के लिए (केंद्र सरकार)
केंद्र राज्यों को और अधिकार देने के लिए तैयार नहीं।
ताना-बाना रचना के
तत्व या तार, जैसे- कहानी का ताना-बाना।
शब्दक्रम तथा अन्य तथ्यः-
1. कोश में सभी वर्णों को
अनुस्वार, अनुनासिक से शुरु किया गया है।
2. कोश में शब्दों के मानक रूप
को स्थिर करने में अधिक प्रचलित रूपों को आधार बनाकर चलने की बात को स्वीकार किया
गया है। उदा. गत संस्करणों में कूआँ, दूकान शब्द प्रयोग में थे
परंतु वर्तमान में कुआँ, दुकान आदि प्रचलन में हैं। इन्होंने कुआँ, दुकान आदि शब्दों को सही
माना है।
3. आयी, आयीं, आये, आयें, आयेंगे, जाये, जायेंगे आदि क्रिया
रूपों के स्थान पर आई, आईं, आए, आएँ, आएँगे, जाएँ, जाएँगे आदि शब्दों को स्थान
दिया है।
4. यी और ये के
स्थान पर ई और ए का रूप ग्रहण किया है। उदा.
किराएदार।
5. कोश में लाघव रूपों को ही
वरीयता दी गई है। उदा. तत्त्व, महत्त्व आदि।
6. उपसर्ग तथा प्रत्यय को मूल
से अलग नहीं किया गया है। उदा. उपसर्गः- अनिर्दिष्ट, अपरिचित आदि। प्रत्ययः-
प्रचुरता, खारापन आदि।
7. नई संकल्पनाओं के सूचक अंग्रेजी
शब्दों के आधार पर गड़े जाने वाले समस्त पदों में योजिका चिह्न लगाया गया है।
लेकिन कई जगह ये इस नियम को भूल गए हैं। उदा. जनसंचार जबकि भूमिका
में जन-संचार लिखा गया है।
8. मुख्य प्रविष्टि में कहीं
भी नुक्ते का प्रयोग नहीं हुआ है।
9. प्रविष्टि के बाद ही भाववाचक
संज्ञा शब्द आदि को कोष्ठक में रखा गया है। उदा. चिरस्थायी (भाव. चिरस्थायित्व)
10.
कोश में जिस शब्द
के मूल स्रोत का पता नहीं है उसके पीछे कोष्ठक में प्रश्न वाचक चिह्न लगाया गया
है। उदा. दूखना, ताखा आदि।
11.
कोश में प्रविष्टि, अर्थ आदि देने के बाद ही
मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
शब्दकोश के अंतिम भाग मेः-
1. परिशिष्ट-1 में अनुवादकों, अधिकारियों, व्यापारियों, छात्रों आदि के लिए
महत्वपूर्ण अंग्रेजी-हिंदी शब्दावली को रखा गया है।
2. परिशिष्ट-2 में विपरीतार्थक
शब्दों को स्थान दिया गया है।
3. परिशिष्ट-3 में नाप, माप और तौल की सारणियों को
भी रखा गया है।
कमियाँ –
1. कोश में शब्दों के अर्थ
बहुत ही सीमित दिए गए हैं, जो केवल पर्याय की भांति दिखाई पड़ते हैं।
2. कोश में भाषा के मानकीकरण
की बात कही अवश्य गई है। लेकिन कोश में भाषा की दृष्टि से एकरूपता नहीं है। उदा. आरंभ
शब्द की प्रविष्टि में अनुस्वार का प्रयोग किया गया। लेकिन उसके अर्थ में संपादन
शब्द आया तो उसे सम्पादन लिखा गया। ऐसे कितने ही उदाहरण कोश में मिल जाते
हैं।
3. कोश में कविताओँ, गीतों आदि में प्रयुक्त
होने वाले शब्दों के पीछे संकेत चिह्न अवश्य लगाए गएँ हैं। परंतु यह नहीं बताया
गया कि यह शब्द किस कविता, गीत, रचना आदि से लिया गया है।
4. कोश में स्थानिय बोलचाल के
शब्दों को रखा गया है ऐसा भूमिका में कहा गया है। लेकिन कोश में यह कहीं भी पता
नहीं चलता की यह शब्द किस क्षेत्र अर्थात् जगह बोले जा रहे हैं।
5. कोश की भूमिका में उदाहरण
के लिए बहुत से शब्दों का प्रयोग किया गया है। लेकिन उन शब्दों का कोश के अंदर न
होना कोश पर प्रश्न चिह्न लगाता है। उदा. पनबिजली, चिड़या-घर, भ्रम-निवारण, आदि।
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