रविवार, 12 मई 2013

समाचारपत्र


समाचारपत्र

मुद्रण यंत्रों के अविष्कार तथा छापेखाने की विकास यात्रा से समाचारपत्रों का जन्म हुआ माना जाता है। पुनर्जागरण काल से समाचारपत्रा पूर्णतः अस्तित्व में आया। जैसे-जैसे यूरोप में व्यापार का पैफलाव हुआ और लोंगों को एक दूसरे के बारे में जानने की इच्छा जागी तो इसी जानने की इच्छा को लिखित रूप से मुद्रित कर सन् 1622 में लंदन के एक दर्जन मुद्रकों ने मिलकर समाचारपत्रा को जनता का सम्प्रेषण का माध्यम बनाया। ये अपने ग्राहकों को नियमित रूप से ‘समाचार चैपन्ने’ देते थे। ये सभी साप्ताहिक समाचारपत्रा थे। चंचल सरकार लिखते हैं कि, ‘‘आरंभिक समाचारपत्रा सोलहवी सदी में निकले, जिसमें मुख्यतः वाणिज्य सम्बन्ध्ी समाचार होते थें चूंकि सरकार के निर्णयों का वाणिज्य और व्यापार पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता था इसलिए बाद में राजनीतिक समाचार भी छपने लगे।’’ख्1,  विकास की गति बढ़ने और पिं्रटिंग प्रेस के विशाल रूप लेने के चलते सन् 1702 में लंदन का पहला दैनिक ‘डैली काॅर्नट’ ;क्ंपसल ब्वनतंदजद्ध नामक समाचारपत्रा आस्तित्व में आया। चीन में ‘पीकिंग गजेट’ के नाम से एक विज्ञप्ति प्रकाशित होती थी, जिसे कुछ विद्वानों ने संसार का सर्वप्रथम समाचारपत्रा माना है। वास्तव में प्रेस के विकास के बाद विश्व के अनेक देशों में समाचारपत्रा प्रकाश में आने लगे और वह जनसंचार का लोकप्रिय साध्न बनने लगे।

भारत की बात की जाए तो भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद ही प्रेस का उदय हुआ और सामाचारपत्रा प्रकाश में आए। 29 जनवरी, 1780 में ‘बंगाल गजेट आॅपफ कलकता जरनल एडवरटाइजर’ पहला समाचारपत्रा कोलकत्ता से प्रकाशित हुआ। जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी लिखते हैं कि, ‘‘कोलकत्ता में सन् 1780 में जेम्स आगस्टस हिकी ने ‘बंगाल गजट’ या ‘कलकता जर्नल एडवर्टाइजर’ समाचारपत्रा प्रकाशित कर भारतीय पत्राकारिता की नींव डाली थी।’’ख्2, इसके बाद तो निर्भिक होकर सन् 1791 में अमेरीका के डुआनी नामक पत्राकार ने कोलकत्ता से ही ‘इण्डियन वल्र्ड’ नामक समाचारपत्रा निकला जिसके वे प्रधन सम्पादक थे। भारतीय पत्राकारों में राजाराम मोहन राय का नाम अविस्मरणीय है। इन्होंने सन् 1820 में अपने मित्रा ताराचंद दत्त तथा भवानी चरण बनर्जी के संपादन में बंगला भाषा में ‘संवाद कौमुदी’ नाम से समाचारपत्रा प्रकाशित किया। अंग्रेजी सरकार के निरंकुश शासन तंत्रा के चलते भारतीय समाचारपत्रों पर अंकुश लगने से समाचारपत्रा निकलते रहे और बंद होते रहे। बंगला भाषा में ही सन् 1818 में ‘दिग्दर्शन’ नाम से मासिक पत्रा श्रीरामपुर बैपटिस्ट मिशन से प्रकाशित हुआ। इसके आठ वर्ष बाद 30 मई, 1826 को कोलकत्ता से ‘उदंत मात्र्तण्ड’ नाम से हिन्दी का पहला पत्रा निकला। जिसके सम्पादक पं. जुगल किशोर शुक्ल थे। ‘उदंत मात्र्तण्ड’ को हिन्दी का प्रथम समाचारपत्रा भी कहा जाता है। निरंकुश अंग्रेजी शासन के चलते अन्य पत्रों की तरह 4 दिसंबर, 1828 में यह बंद हो गया और सन् 1850 में शुक्ल जी ने ‘सामदण्ड मात्र्तण्ड’ नामक एक नया पत्रा निकाला।

सन् 1857 तक कई समाचारपत्रा निकले जिसमें हिन्दी के अलावा दूसरी भारतीय भाषाओं को भी अपनाया गया था। इन सब का उद्देश्य अंग्रेजी सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध् करना था, जिनमंें से कुछ प्रमुख समाचारपत्रा इस प्रकार हैं।

समाचारपत्रा का नाम

सन्

स्थान जहाँ से प्रकाशित हुए

मात्र्तण्ड

सुधकर

1846

1850

कोलकत्ता

बनारस

बु(ि प्रकाश

1852

आगरा

ग्वालियर गजेट

1853

ग्वालियर

समाचार सुधवर्षण

1854

कोलकत्ता

समय की गति और अंग्रेजी शासन की निरंकुश नीतियों के कारण समाचारपत्रांे को स्थायित्व नहीे मिल पाया। सन् 1881 में बाल गंगाध्र तिलक ने मराठी में ‘केसरी’ और ‘मरहट्ठा’ समाचारपत्रा निकाला। सन् 1919 में साप्ताहिक समाचारपत्रा ‘यंग इंडिया’ निकला, जिसके सम्पादक मोहनदास करमचंद गाँध्ी थे। भारत में समाचारपत्रों का सही जन्म और विकास आजादी की लड़ाई के समय ही हुआ और इसमें कोई संदेह नहीं कि अध्किांश समाचारपत्रों का प्रकाशन और संपादन करने वाले भारतीय स्वतंत्राता सेनानी थे। इन सभी समाचारपत्रों का उद्देश्य भारत की स्वतंत्राता और अंगे्रजी सरकार की दमनकारी नीतियों को लिखकर जनता तक पहँुचाना था।

स्वतंत्राता के बाद समाचारपत्रों की बात की जाए, तो लगभग सभी समाचारपत्रा नए जोश और उत्साह से भरे हुए थे। राष्ट्रहित और जनता की समस्याओं को उजागर कर सरकार का ध्यान आकर्षित करना, यह अपना परम ध्र्म समझने लगेे। सही अर्थों में स्वतंत्राता के बाद ही हिन्दी समाचारपत्रों ने आशतीत प्रगति की और उन्हें स्थायित्व मिला। स्वतंत्राता संग्राम के बाद अस्तित्व में आए कुछ बड़े स्तर के हिन्दी दैनिक समाचारपत्रा इस प्रकार हंै।



समाचारपत्रा का नाम

सन्

स्थान जहाँ से प्रकाशित हुए

नवभारत टाइम्स

1947

दिल्ली

नवजीवन

1947

लखनऊ

दैनिक जागरण

1947

लखनऊ

अमर उजाला

1948

आगरा

सन्मार्ग

1948

वाराणसी

युगध्र्म

1951

नागपुर

राष्ट्रदूत

1951

राजस्थान

वीर अर्जुन

1954

दिल्ली

राजस्थान पत्रिका

1956

राजस्थान

वीर प्रताप

1958

प्ंाजाब

दैनिक भास्कर

1958

भोपाल

देशबंध्ु

1959

रायपुर

पंजाब केसरी

1964

जालंध्र

जनसत्ता

1983

दिल्ली

राष्ट्रीय सहारा

1991

दिल्ली

समाचारपत्रों में समयानुसार दिनों दिन बढ़ोतरी हो रही है और साथ ही समाचारपत्रों ने साहित्य, संस्कृति, ध्र्म, वाणिज्य, समाज, खेल आदि की दुनिया को अपने पन्नों में समाहित भी कर लिया है। इन सभी विषयों से जुड़े स्तंभ या समाचारों के लिए समाचारपत्रा में अलग-अलग पृष्ठ भी बना दिए गए हैं या ये कहंे कि समाचारपत्रों को पाठक की रूचि के अनुसार बाँट दिया गया है। भारत में दिनों-दिन समाचारपत्रों की लोकप्रियता बढ़ रही है। चंचल सरकार लिखते हैं कि, ‘‘दैनिक पत्रों ने स्वतंत्राता के बाद जो गति दिखाई, वह गति आज भी बरकरार है। समाचारपत्रा दिनों-दिन अपने अंदर नयापन लाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, जिससे उनका रोज नया कलेवर हमारे सामने आ रहा हैं।’’ख्3, इस प्रकार समाचारपत्रा जनसंचार माध्यमों में महत्वपूर्ण भूमिका आदा करते रहे हैं तथा अलग पहचान भी बनाए हुए हैं।



ख्1, चंचल सरकार, समाचारपत्रों की कहानी ;दिल्ली: नेंशनल बुक ट्रस्ट, 2006द्ध, पृ.6

ख्2, जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी, हिन्दी पत्राकारिता का इतिहास ;दिल्ली: प्रभात प्रकाशन, 2004द्ध, पृ. 05

ख्3, चंचल सरकार, समाचारपत्रों की कहानी ;दिल्लीः नेशनल बुक ट्रस्ट, 2006द्ध, पृ. 18

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