गुरुवार, 9 मई 2013


मंच खुला है पत्रकारिता कीजिए
                                 डॉ. नीरज भारद्वाज

हिंदी भाषा के विकास में हिंदी पत्रकारिता का विशेष योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता का विकास भाषात्मक दष्टि से खड़ी बोली से संबंधित रहा है। इस विकास में भाषा के प्रति जागरूक पत्रकारों का अपना विशेष योगदान रहा है। पंडित युगल किशोर शर्मा को यदि हिंदी पत्रकारिता का प्रथम हस्ताक्षर मान लिया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा, क्योंकि सभी शोध प्रबंधों और विद्वानों ने उन्हें ही हिंदी का प्रथम समाचारपत्र चलाने वाला अर्थात् संपादक और अग्रीम हिंदी पत्रकार माना है। उस दौर के कुछ पत्रकार हिंदी भाषी भी थे तो कुछ हिंदीतर भाषा-भाषी थे। विचार किया जाए तो  कुछ व्यक्तित्व पहले साहित्यकार थे, जो बाद में पत्रकार बने,  तो कुछ ने पत्रकारिता से शुरूआत करके साहित्य जगत में अपना स्थान बनाया। इन सभी भाषा प्रमियों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया।
हिंदी पत्रकारिता अपने शुरुआती दौर से ही समय और समाज के प्रति जागरूक रही और पत्रकारों ने निश्चित लक्ष्य के लिए ही इससे अपने को जोड़ा। उनके लक्ष्य थे राष्ट्रीयतासांस्कृतिक, साहित्य उत्थान और साधारण जन। तब पत्रकारिता एक मिशन  के रुप में कार्य कर रही थी और  राष्ट्रीय हित ही पत्रकारिता का मूल उद्देश्य था और पत्रकार एक निडर व्यक्तित्व लेकर खुद आगे बढ़ते थे तथा दूसरों लोगों को भी प्रेरित करते थे। अपने आदर्शों लिए समाज को इन पत्रकारों को अथाह सम्मान मिला और भावी पत्रकारिता कि नींव रखी।
हिंदी पत्रकारिता के शुरुआती दौर में कुछ पत्रकार प्रकाशस्तंभ अर्थात् मार्गदर्शक बने और उन्होंने अपने समय में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए कितने ही नवयुवकों को लक्ष्यवेधी पत्रकारिता के लिए तैयार किया और पत्रकारिता की मशाल को जलाए रखा। यह शुरूआती पूरा युग हिंदी पत्रकारिता का स्वर्णयुग कहा जा सकता है। स्वतंत्रता संग्राम के समय लगभग सभी स्वतंत्रता सैनानी और देशभक्त प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से पत्रकारिता भी करते थे।

यदि हम दृष्टि डाले तो पता चलता है कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम में सभी देशभक्त एक साथ कितने ही कार्यों को करते थे और पत्रकारिता उनका कितना बडा हथियार था। बालकृष्ण भट्ट हिंदी प्रदीप  के संपादक पत्रकार होने से साथ-साथ साहित्यकार भी थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र कविवचन सुधाहरिश्चंद्र मैगजीनहरिश्चंद्र चंद्रिकाबालाबोधिनी आदि पत्रिका चलाते थे। प्रताप नारायण मिश्र ब्राह्मण नामक पत्र चलाते थे। यह आधुनिक हिंदी के सचेतन पत्रकार माने जाते हैं। मदनमोहन मालवीय हिंदोस्थानअद्भुदयमर्यादा आदि का संचालन करते थे। मेहता लज्जाराम शर्मा गुजराती भाषी थे। लेकिन हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में सर्वहितवेंकटेश्वर समाचार आदि चलाते थे। बाबू बालमुकुंद गुप्त अखबारे-चुनारहिंदी बंगवासीभारतमित्र आदि का संचालन करते थे। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सरस्वती पत्रिका को चलाते थे। वे भाषा कि दृष्ट से हिंदी पत्रकारिता के शलाक पुरुष हैं। माधव राव सप्रे छत्तीसगढ मित्रकर्मवीर आदि का संचालन करते थे। वे  रा्ट्रीयता की प्रतिमूर्ति थे। माखनलाल चतुर्वेदी कर्मवीरप्रभाप्रताप को चलाते थे। गणेश शंकर विद्यार्थी अभ्युदयप्रताप पत्र को चलाते थे। इन्होने पत्रकारिता में बलिदान का अमर संदेश दिया। राजा राममोहन राय ने संवाद कौमुदी, ब्रह्मैनिकल मैगजीन, मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे प्रसिद्ध पत्रों का प्रकाशन किया। स्वदेशी और स्वराज की बातों को तिलक ने अपने पत्र मराठा और केसरी में उजागर किया।  'यंग इंडिया', 'नवजीवन' में महात्मा गांधी जी के संपादकीय और लेख पत्रकारिता को सामाजिक सरोकारों से जोडने की पुष्टि करते हैं। 'हरिजन', 'हरिजन सेवक' और 'हरिजन बंधु' में व्यक्त किए गए गांधी जी के विचार समाज के कमजोर तबके तक के उनके चिंतन की व्यापकता को दर्शाते ही नहीं, उनकी सार्थकता भी सिध्द करते हैं।
 इस दृष्टि से पत्रकारिता अपने शुरुआती समय से ही बलिदान और राष्ट्र हितेशी रही है। वर्तमान में कुछ लोग पत्रकारिता पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं। लेकिन उन्हें स्वयं देखना होगा कि बात कहना आसान है और उसका पालन करना कितना कठिन कार्य है। आज पद और शासन में बैठकर पत्रकारिता के बारे में कुछ भी कहा जा रहा है। परंतु उपर्युक्त लोगों के जीवन को पढने के बाद, बात सोचने की यह है कि आज कितने पदाधिकारी पत्रकारिता के लिए समय निकाल रहे हैं और कितने इससे जुडे हुए है। केवल बाते बनाना आता है जब लिखने कि बारी आती है तो समय की कमी सभी बता देते हैं। पत्रकारिता सदा से मिशन थी और सदा मिशन रहेगी। कुछ लोगों के कारण पूरे पत्रकार समाज को एक तराजू में तोलना ठीक नहीं है। यह खुला मंच है यहां कोई भी आकर लिख सकता है। लेकिन विचार व्यक्त करने आने चाहिए।

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