मीडिया और समाज
डा. नीरज भारद्वाज
नई सूचना प्रौद्योगिकी अर्थात्
इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया की पहुंच बढ़ना लोकतंत्र के लिए अच्छ है। देखा जाए
तो भारत की जनता की आकांक्षाओं और भावनाओं को भारतीय भाषाओं के समाचारपत्रों के
माध्यम से ही सही तरीके से जाहिर किया जा सकता है। मीडिया उन मुद्दों का कवरेज
बढ़ाता है, जो देश के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। मीडिया जनसूचना
का ही नहीं बल्कि जनशिक्षण और जनजागरण का भी महत्वपूर्ण कार्य करता हैं। समाचार
पत्रों की संख्या में बढ़ोत्तरी के संदर्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का कहना
था कि- ‘‘समाचारपत्र शिक्षा
प्रचार का प्रधान साधन है। जिस देश में जितने ही अधिक पत्र हों, उसको उतनी ही
अधिक जागृत अवस्था में समझना चाहिए।‘‘ हमारे देश का मीडिया स्वतंत्र
है और स्वतंत्रता के बाद देश में मीडिया की भूमिका और उसके काम करने के तरीके पर
चर्चा होती रही है। देश में आम धारणा है कि मीडिया पर कोई बाहरी दबाव नहीं होना
चाहिए। आज देखा जाए तो सोशल मीडिया अथवा न्यू-मीडिया के सकारात्मक पक्षों पर उतनी
चर्चा नहीं होती है, जितनी की उसके नकारात्मक पक्षों की। इसका कारण यह है कि लोग
लगाम कसने से पहले उसको बदनाम करना जरूरी समझतें हैं। आज सोशल मीडिया ने सभी को विभिन्न
आंदोलनों और सामाजिक बहसों को चलाने में युवाओं को एक मंच प्रदान किया है। मीडिया के प्रतिनिधियों को मिल जुलकर ऐसा रास्ता निकालना चाहिए जिससे
निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता को बढ़ावा मिले और सनसनी फैलाने की प्रवृत्ति कम हो।
क्योकि कई बार सूचनाओ के गलत मिलने से कितनी ही बडी-बडी दुर्घटनाएं घट चुकी हैं।
मीडिया के हाल देखते हुए अज्ञेय कि पंक्तियां याद आती है वे लिखते है कि, ‘‘हिन्दी पत्रकारिता के आरंभ के युग में हमारे
पत्रकारों की जो प्रतिष्ठा थी, वह आज नहीं है। साधारण रूप से तो यह बात कही जा सकती है, अपवाद खोजने चलें
तो भी यही पावेंगे कि आज का एक भी पत्रकार या संपादक वह सम्मान नहीं पाता जो कि
पचास-पचहत्तर वर्ष पहले के अधिकतर पत्रकारों को प्राप्त था। आज के संपादक पत्रकार
अगर इस अंतर पर विचार करें तो स्वीकार करने को बाध्य होंगे कि वे न केवल कम सम्मान
पाते हैं, बल्कि कम सम्मान
के पात्र हैं- या कदाचित सम्मान के पात्र बिल्कुल नहीं हैं, जो पाते हैं
पात्रता से नहीं इतर कारणों से।‘‘ इस प्रकार हमें समय की गति के अनुसार समझना और जानना चाहिए की मीडिया कब क्या
कर रहा है।
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