बदलता मीडिया
तंत्र
डा. नीरज
भारद्वाज
आज पूरे विश्व
में संचार तकनीक एवं माध्यमों ने अद्भुत व अभूतपूर्व परिवर्तन किए हैI देखा जाए तो आज तकनीक ने भौतिक सीमाओं को तोड़कर संपूर्ण विश्व
को एक-सूत्र में पिरो दिया है I इसी के चलते सूचना और संचार का क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण हो
गया हैI संचार का क्षेत्र
केवल पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं है वरन् यह आधुनिक युग का एक ऐसा सत्य है, जो
मानव-जीवन तथा इससे जुड़े लगभग सभी क्षेत्रों से किसी न किसी रूप से जुड़ा हुआ है I पिछले कुछ वर्षों
में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के क्षेत्र में काम करने की परिकल्पना में भी
बड़ा परिवर्तन आया है I संचार का यह क्षेत्र आज न केवल उच्च पारिश्रमिक देने वाला
बन गया है, बल्कि साथ ही नौकरी प्रदान करने वाला भी हो चुका है I
हिंदी पत्रकारिता
के प्रारंभिक काल की बात करे अर्थात् स्वतंत्रता से पहले जो भारतीय नवजागरण अथवा
पुनर्जागरण का काल था। उस समय भारत की राष्ट्रीय, जातीय व भाषायी
चेतना जागृत हो रही थी। इस समय की पत्रकारिता एक मिशन के तौर पर काम कर रही थी। उस
समय के सभी पत्रकारों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में जो आदर्श स्थापित किए, वे पत्रकारिता के
लिए मार्गदर्शन का स्त्रोत भी बने। लेकिन समय के साथ परिवर्तन हुआ और सभी आदर्श
तथा जीवन मूल्य पीछे रह गए। दिन-प्रतिदिन बदलती पत्रकारिता ने आज बाजार का रुप ले
लिया। आज पत्रकारिता और बाजार एक दूसरे के पूरक जान पड़ते हैं। मीडिया उन्हीं
घटनाओं और मुद्दों को दिखाता है, जिनका मीडिया के बाजार से सरोकार होता है। देश व समाज की
मूल समस्याओं से मीडिया अपना जुड़ाव महसूस नहीं करता है, बल्कि वह उन
बातों को अधिक ध्यान देता है, जो उसके मध्यमवर्गीय उपभोक्ता वर्ग का मनोरंजन कर
सकें। बढते समाचार चैनलों और समाचारपत्रों के चलते और उन में हो रही आपा-धापी को
देखते हुए कई बार लगता है कि 24 घंटे के ख़बरिया चैनल कितने घंटे खबरें दिखातें हैं? जब भी टीवी खोलो, इन चैनलों पर ‘हंसी’ की बातें, ‘फिल्मी बातें’ और ‘टीवी नाटकों’ की कहानी तथा
उनके पात्रों के बारे में ही दिखाया या बताया जाता है। सोचा जाए तो क्या ये ख़बरें
हैं? वास्तव में खबरों के लिए, ‘दूरदर्शन’ चैनल ही लगाना पड़ता है
और सरकार की सामाजिक नीतियां तथा जनकल्याण संबंधी बातें भी उसमें ही दिखाई पडती
है।
गिरते मूल्यों के
इस दौर में आज,
फिर मिशनरी
पत्रकारिता की जरूरत नजर आती है। आज साधन हैं, सुविधाएं है बस, जरूरत है तो इस
बात की है कि उन्हें अच्छी तरह से, जनोपयोगी रूप से इस्तेमाल किया जाए। मीडिया के सामने चाहे
जो भी संकट आये लेकिन अपने जीवन मूल्यों और आदर्शों को न छोडे यही सच्ची
पत्रकारिता है।
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